Book Title: Jain Vastu Vidya
Author(s): Gopilal Amar
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 48
________________ (परकोटा), परिखा (खाई), गोपुर (विशाल प्रवेशद्वार ) अटारी आदि का निर्माण था । " भूमि परीक्षा की आवश्यकता मंदिर, मकान, कारखाना, किला, कॉलोनी, नगर आदि के निर्माण के लिए भूमि का चयन जितना मुश्किल है, उतना ही ज़रूरी भी है। भू-स्थल परीक्षा या जियोलॉजिकल सर्वे और मृत्तिका परीक्षण या सॉयल टेस्ट में जो खरी उतरे, वही भूमि चुनी जाए। निर्माण के लिए प्रस्तावित भूमि की परीक्षा पाँचों इन्द्रियों से की जाए। खुरदरापन- चिकनापन, खारापन- सोंधापन, बदबू खुशबू उसके दोष या गुण के प्रतीक हैं। जिस भूमि को देखते ही रहने को मन करे, जिससे मौन निमंत्रण मिलता लगे; वह भूमि चुनी जाए। जिस भूमि की धमक में बुलंदी हो, अर्थात् पत्थर आदि पटकने से उठी आवाज़ से जिसके ठोसपन का पता लगे, वह भूमि अच्छी मानी जाए। यह भी देखा जाये कि भूमि ऊबड़खाबड़ या टेढ़ी-मेढ़ी न हो। उसमें गड्ढे न हों, कंकड़-पत्थर की अपेक्षा मिट्टी अधिक हो, और एक पुरुष की गहराई पर जल बह रहा हो। वहाँ की जलवायु न बहुत ठंडी हो, न बहुत गर्म । इस सदर्भ में पंडित आशाधर का कथन उद्धृत करने योग्य है "जिनमंदिर के लिए ऐसी भूमि ली जाए जो देखने में अच्छी लगे, चिकनी हो, सुगंध आदि गुणों से समृद्ध हो, दूब से हरी-भरी हो, स्वाभाविकरूप से शुद्ध हो या जिनदेव के जन्म आदि किसी कल्याणक से पवित्र हो । भूमि के ठोसपन की जाँच भूमि जितनी ठोस होगी, उस पर होने वाला निर्माण उतना ही स्थायी होगा। भूमि के ठोसपन की जाँच के कुछ मनोरंजक, लेकिन वैज्ञानिक उपाय हैं। प्रस्तावित भूमि के किसी भाग में लगभग दो वर्ग फुट गड्ढा खोदा जाए और उसमें उसी की मिट्टी भरी जाए। भरने के बाद जितनी अधिक मिट्टी बचे, उतनी ही ठोस वह भूमि होगी, उत्तम होगी। मिट्टी बचे नहीं, तो वह भूमि मध्यम होगी। मिट्टी भरने के बाद भी गड्ढा खाली रहे, तो भूमि बिल्कुल ठोस नहीं होगी: ऐसी जघन्य भूमि पर निर्माण नहीं किया जाए। जैन वास्तु-विद्या

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