Book Title: Jain Vastu Vidya
Author(s): Gopilal Amar
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 62
________________ निर्मित मकान में रहनेवाले भी सदाचारी होंगे। उसके खून में दुराचार होगा तो वह जो भी निर्माण करेगा, वह दुराचार का अड्डा बन जाएगा। इसलिए यह अत्यंत आवश्यक है कि स्थपति के रूप मे वही व्यक्ति नियुक्त किया जाए, जिसका शील देख-परख लिया गया हो। स्थपति आदि का सम्मान निर्माण के आरम्भ और अंत में सभी कारीगरो का यथोचित सम्मान किया जाना चाहिये । स्थपति अर्थात् सूत्रधार के सम्मान का विधान प्रासादमंडन में अत्यंत मार्मिक शब्दों मे किया गया है: निर्माण कार्य से जो पुण्य सूत्रधार ने कमाया, उसे वह पुण्य गृहस्वामी माँगे; जिसके उत्तर मे सूत्रधार कहे कि "स्वामिन्! आपका यह निर्माण अक्षय रहे, यह मकान आज तक मेरा था अब आज से आपका हुआ।" निर्माण के पश्चात् भूमि, धन, वस्त्र, अलकार आदि भेट करके सूत्रधार का सम्मान किया जाए। अपनी क्षमता के अनुसार वस्त्र, पान और भोजन से अन्य शिल्पियो और कारीगरों का भी सम्मान किया जाए। लकडी और पत्थर के कारीगर जिस मकान मे भोजन करते है, उसमें गृहस्वामी सुख से रहता है। साथ ही उन सभी व्यक्तियों का भी सम्मान-सत्कार किया जाए, जिनका किसी भी प्रकार का सहयोग इस निर्माण मे मिला हो । प्रतिष्ठाचार्य का सम्मान भूमिशोधन, निर्माण के शुभारम्भ एवं गृहप्रवेश आदि के अवसर पर पूजा-पाठ करानेवाले प्रतिष्ठाचार्य के सम्मान की प्रेरणा भी वास्तुग्रन्थो मे दी गई है। प्रतिष्ठा सारोद्धार मे पडित आशाधर जी के शब्द इस सदर्भ में अत्यत मार्मिक है: "प्रतिष्ठा के लिए प्रतिष्ठाचार्य को लेने शुभ मुहूर्त में यजमान उसके घर भाई-बंधुओ के साथ जाए, जिनके आगे अक्षत-भरे थाल लिए महिलाएँ मंगल गान करती हुई चल रही हों।" तथा प्रणाम करके यजमान उससे कहे कि "मैने न्याय से उपार्जित धन बचाकर रखा-बढ़ाया है, उसे अरिहन्त की पूजा में लगाकर परम पुण्य प्राप्त करना चाहता हूँ । यह कार्य कितना महान् है और मै कितना तुच्छ हूँ ! अब तो आप जैसे सिद्धहस्त योग्य प्रतिष्ठाचार्य का ही सहारा है। आपकी योग्यता जौंचीपरखी है, आपकी कार्य- शैली कई बार देखी समझी है, आपके परोपकारो का वर्णन मैं कैसे कर सकता हूँ? आप औरों की इष्ट-सिद्धि करते है, सो जैन वास्तु-विद्या 36

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