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रखा जाए।
घर के सामने अरिहंत जिनदेव की दृष्टि या दाँया भाग हो, तो कल्याण होगा। इसके विपरीत होने पर घर हानिकारक हो सकता है; परतु बीच मे मुख्य रास्ता आता हो, तो वह दोष नहीं माना जाए। घर के सामने जिनदेव की पीठ हानिकारक है।
घर की साज-सज्जा का प्रावधान भी रखा जाए। फलवाले वृक्ष, पुष्पों की लता, सरस्वती देवी, नौ निधियों के साथ लक्ष्मी देवी, कलश, स्वस्तिक आदि मागलिक चिह्न, शुभ स्वप्नों के चित्र घर की शोभा बढ़ाते है। आवास-गृह और वृक्ष
पर्यावरण की दृष्टि से घर में और उसके आसपास पेड़-पौधे हों, -यह वांछनीय है। परतु वास्तु-शास्त्र मे कुछ वृक्षों से दूर रहने का परामर्श दिया गया है। कपित्य (कैंथ), कदम्ब, केला, बिजौरा, नीच, अनार, जंभीरी, आक, इमली, बबूल, बेर और पीले फूलवाले वृक्ष घर में नहीं बोना चाहिए। सभवतः आयुर्वेद शास्त्र के अनुसार यह परामर्श दिया गया है। इन वृक्षो की जडे जिस घर में घुसी हो, यहाँ तक कि इन वृक्षों की छाया जिस घर पर पड़ती हो; वह घर पूरे कुल को बरबाद कर सकता है। कितु तुलसी का पौधा घर मे अवश्य लगाना चाहिए।
जो सूखा हुआ, टूटा हुआ, श्मशान के साथ स्थित हो, जिस पर पक्षियो के घोसले हो, जिसे काटने से दूध निकलता हो, जो बहत लबा हो-ऐसा वृक्ष तथा नीम और बहेडा आदि वृक्ष घर बनाने के लिए काटकर नहीं लाएँ, क्योकि ये आयुर्वेद की दृष्टि से हानिकारक हो सकते है, धार्मिक दृष्टि से अशुभ एव हिसावर्धक माने जाते हैं तथा इमारती कार्य के लिए कमजोर सिद्ध होते है। ___घर के पास स्थित कैंटीले वृक्ष भयकारक, दूधवाले वृक्ष लक्ष्मीनाशक और फलवाले वृक्ष संतान-घातक होते हैं। घर के पास से ये वृक्ष हटा दिए जाएँ या फिर उनके पास पुनाग (नागकेसर), अशोक, रीठा, बकौली, कठहल, शमी, शाल आदि सुगधित वृक्ष बो दिये जाएँ; ताकि उनका दोष शात हो जाए। गूलर, पीपल, ऊमर, कठूमर, पलाश आदि वृक्षों (फिग ट्रीज़) की लकड़ी भी घर में नहीं लगानी चाहिये, क्योकि वह ठोस नहीं होती है। घर में ऐसी लकड़ी का उपयोग कभी नहीं करना चाहिए, जिसका
(जन वास्तु-विद्या