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सिंहद्वार से बाई ओर घूमकर मुख्यद्वार में प्रवेश करना पड़ता हो, तो वह हीन-बाहु' प्रवेश कहा जाएगा; जिसका दुष्फल है-निर्धनता, मित्रबंधुओं की कमी, स्त्रियों का बोलबाला और बीमारियों का सिलसिला। सिंहद्वार में सिंहद्वार की दीवार घूमकर किया जानेवाला प्रवेश प्रत्यक्ष' या 'पृष्ठभंग' प्रवेश होगा और उसके वे ही दुष्फल होंगे, जो 'हीनबाहु' प्रवेश के होते हैं। मुख्य द्वार की ऊँचाई और चौड़ाई
घर की चौड़ाई जितने हाथ (लगभग चौबीस इंच) हो, उतने अंगुल (लगभग एक इंच) में साठ (60) अंगुल और जोड़ने पर जितने अंगुल आएँ, उतनी ऊँचाई मुख्यद्वार की हो। आवश्यकता के अनुसार साठ के बदले पचास या सत्तर अंगुल भी जोड़े जा सकते हैं।
द्वार की ऊँचाई का आधा और सोलहवाँ भाग मिलाने पर (नौ बटे सोलह) जो नाम आए, उतनी चौड़ाई उस द्वार की रखी जाए। मान लें कि द्वार की ऊँचाई अस्सी अंगुल है, तो उसके आधे चालीस और सोलहवें भाग, यानी पाँच अंगल मिलाकर पैंतालीस अंगल उस द्वार की चौड़ाई होगी।
द्वार की चौड़ाई एक अन्य प्रकार से भी निकाली जा सकती है। घर की ऊँचाई (अनुमानित बारह फुट) की दो तिहाई (आठ फुट) द्वार की ऊँचाई और उसकी आधी (चार फुट) चौड़ाई रखी जाए। अन्य द्वार मुख्य-द्वार के बराबर, या उससे छोटे, लेकिन उसी अनुपात मे बनाये जा सकते हैं। द्वार के साथ खिड़की या खिड़कियाँ सुविधानुसार बनाई जा सकती हैं।
पश्चिम दिशा में द्वारवाले घर में यदि दो द्वार और शाला हो, तो अनिष्ट की संभावना रहेगी। द्वार पर कमल का अंकन (उकेरना) आवश्यक है; परंतु एक ही कमल अंकित हो, तो वह अशुभ होगा। जिस बार के किवाड़ (पल्ले) अपने आप खुल जाएँ या बंद हो जाएँ, वह द्वार अशुभ होता है। कलश आदि के चित्रों से अलंकृत मुख्यावार शुभकारक होता है। गृहसज्जा का महत्व
आवास-गृह की साजसज्जा से गृहस्वामी के आचार-विचार का परिचय मिलता है। सज्जा के रूप और विषय का निर्धारण साहित्य, परंपराएँ. मॉडर्न आर्ट आदि करते हैं; सज्जा करने का व्यवसाय (इंटीरियर डेकोरेशन)
जन वास्तु-विणा)