Book Title: Jain Vastu Vidya
Author(s): Gopilal Amar
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 25
________________ जैनशास्त्रों में प्रासंगिक कथनों के रूप में वास्तुविद्या पर इतने विपुल परिमाण में सामग्री उपलब है कि उसे गहन शोध-खोजपूर्वक संकलितकर यदि सम्पादित किया जाये, तो एक विशाल शोध-प्रबन्ध निर्मित हो सकता ___ इस दृष्टि से विद्ववर्य डॉ. गोपीलाल जी अमर विरचित यह कृति तो प्रस्तावना मात्र है; एक मंगल प्राथमिक प्रयास है, जो विद्वानों को इस दिशा में कार्य करने की शुभ-प्रेरणा के साथ उन्हें आहत करता है। आशा है विद्वज्जन इस आह्वान से आकर्षित एवं प्रेरित होकर इस दिशा में व्यापक शोध-निमित्त अग्रसर होंगे। वास्तव में वास्तुशास्त्र पर लेखनकार्य के लिये मात्र शास्त्रीय अध्ययन ही पर्याप्त नहीं है, अपितु व्यापक व्यावहारिक अनुभव एवं सक्ष्म दृष्टि भी अपेक्षित है। इस कृति के विद्वान् लेखक डॉ० 'अमर' जी एवं प्रकाशक श्रीमान सुरेशचन्द जी के अपनत्वपूर्ण अनुरोध पर मैं इसकी प्रस्तावना लिखने में प्रवृत्त हुआ। यद्यपि मैं बहुत विशेषज्ञ विद्वान् नहीं हूँ तथापि विद्वानों के महत्त्वपूर्ण सुझाव-बिन्दुओं को संजोकर अल्पावधि में जितना संभव था, उतने अध्ययनपूर्वक यह संक्षिप्त पुरोवचन लिखे हैं। यह कृति सदगृहस्थों को प्रेरणादायी मांगलिक निमित्त बने - इस सद्भावना के साथ विराम लेता हूँ। --डॉ० सुदीप जैन XVI

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