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विमुक्तिका सोघा मार्ग है । भूतयज्ञ - पशुयज्ञ तुम्हारी कर्मविमुक्तिका मार्ग नही है, प्रत्युत कर्म-युक्तिका मार्ग है, दुर्गतिका कारण है । अत यज्ञोमें किया गया पशु-वध धर्म नही है ।
arathi आत्माको सर्वथा क्षणिक मानना प्रत्यक्ष प्रमाणसे बाधित है । प्रत्यक्षसे समस्त पदार्थ स्थिर स्थूल प्रतीत होते है । " असत् का उत्पाद नही होता है और सन्का विनाश नही होता" अर्थात् जो नही है वह उत्पन्न नही हो सकता और जो है - जिसका सद्भाव है उसका सर्वथा विनाश -- अभाव नही हो सकता । इस सिद्धान्त के अनुसार आत्मा जब सद्- सद्भावरूप है तो उसका सर्वथा विनाश नही हो सकता । पर्यायरूपसे नाश होनेपर भी द्रव्यरूपसे उसका अवस्थान बना ही रहता है । अत आत्माकी अनित्यताको लेकर वैदिक हिसाका निषेध नही हो सकता । उसका तो उपर्युक्त ढगसे ही निपेध हो सकता है । इस प्रकार भगवान् महावीरने ऐसी-ऐसी अनेको समस्याये हल की और विश्वको समभाव द्वारा सन्मार्गपर लगाया । भगवान् महावीर के हो सिद्धान्तोपर महात्मा गाघी चले और समस्त राष्ट्रको चलाया है ।
सत्य और अहिंसा आत्माकी अपनी विभूति हैं। उन्हें हम भूले हुए हैं । भगवान् महावीर द्वारा प्रदर्शित सत्य और अहिंसाका आलोक स्थायी आलोक है । उसे हमें पूर्ण नैतिकता के साथ प्राप्त करना चाहिये । हमें भगवान् महावीरके पूर्ण कृतज्ञ होना चाहिये तथा उनके आदर्शो - उसूलो-- सिद्धान्तोका हार्दिकतासे अनुशीलन करना चाहिये ।
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