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२ पार्श्वनाथचरितकार वादिराजमरि (ई. १०२५) ने भी पार्श्वनाथचरितमें 'वादिनिह' का समल्लेखन किया है और उन्हें स्याद्वादवाणीकी गर्जना करनेवाला तथा दिन्नाग और धर्मकीर्तिके अभिभानको चूर-चूर करनेवाला प्रकट किया है । यथा
स्याद्वादगिरमाश्रित्य वादिसिंहस्य गजिते ।
दिड्नागस्य मदध्वसे कीर्तिभङ्गो न दुर्घट ॥ ३ श्रवणवेलगोलाकी मल्लिपेणप्रशस्ति (ई० ११२८) मे एक वादीभसिंहमूरि अपरनाम गणभृत (आचार्य) अजितसेनका गुणानुवाद किया गया है और उन्हें स्याद्वादविद्याके पारगामियों द्वारा आदरपूर्वक सतत वन्दनीय और लोगोके भारी आन्तर तमको नाश करने के लिये पृथिवीपर आया दूसरा सूर्य बतलाया गया है। इसके अलावा, उन्हें अपनी गर्जनाद्वारा वादि-नाजोंको शीघ्र चुप करके निग्रहरूपी जीर्ण गड्ढे में पटकनेयाला तथा राजमान्य भी कहा गया है । यधा
वन्दे वन्दितमादरादहरहरस्याद्वादविद्याविदा । स्वान्त-ध्वान्त-वितान-घूनन-विधी भास्वन्तमन्य भुवि । भक्त्या त्वाऽजितसेनमानतिकृता यत्सन्नियोगान्मन - पद्म सद्म भवेद्विकास-विभवस्योन्मुक्त-निद्राभर ॥५४|| मिथ्या-भाषण-भषण परिहरेतीद्धत्यमन्मञ्चत, स्याद्वाद वदतानमेत विनयाद्वादीभकण्ठीरव । नो चेत्तद्गुरुगजित-श्रुति-भय-भ्रान्ता स्थ यूयं यतस्तूण्णं निग्रहजीर्णकूपकुहरे वादि-द्विपा पातिन ॥५५॥ सकल भुवनपालानम्रमूख्ववद्धस्फुरित-मुकुट चूडालीढ-पादारविन्दः । मदवदखिल-वादीभेन्द्र-कुम्भप्रभेदी,
गणभृदजितसेनो भाति वादीभसिंह ॥५७।-शिलालेख न० ५४ (६७) । ४ अष्टसहस्रीके टिप्पणकार लघुसमन्तभद्रने भी अपने टिप्पणके प्रारम्भमें एक वादोभमिहका उल्लेख निम्न प्रकार किया है--
___तदेव महाभागस्ताकिकारपज्ञाता श्रीमता वादीभसिंहेनोपलालितामाप्तमीमासमलचिकोपव स्याद्वादोद्धामिमत्यवाक्यमाणिक्यमकारिकापटमदेक्टकारा मुरयो विद्यानन्दस्वामिनस्तदादौ प्रतिज्ञाश्लोकमेक्माह।'
--अष्टसहनी टि० पृ० १ । यहाँ लघसमन्तभद्र (विक्रमकी १३वी शती) ने वादीभसिंहको ममन्तभद्राचार्यरचित माप्तमीमासाका उपलालन (परिपोषण) कर्ता बतलाया है । यदि लघुममन्तभद्र का यह उल्लेग्य अभ्रान्त है तो यहना होगा कि पादोभसिंहने आप्तमीमासापर कोई महत्त्वको टीका लिसी है और उसके द्वारा आप्तमीमामाका उन्होंने परिपोपण किया है। श्री १० फैलाशचन्द्र जी शास्त्रीने भी इसनी मम्भावना की है और उसमे नाचार्य विद्यानन्द अप्टराहसी गत 'अत्र शास्त्रपरिसमाप्ती फेचिदिद मङ्गलवचनमनुमन्यन्त' पब्दों के साप दत 'जयति जगति' भादि पचको प्रमाणरूपमे प्रस्तुत किया है। कोई आचर्य नहीं कि नाप्नमीमासापर विद्यानन्दवे पूर्व स्प. समन्तभद्रद्वारा उल्लिखित वादीमसिंहने टीका रचो हो और जिमसे ही लघुममन्तभटने उन्हें लाप्नमीमामा
१. न्यायकु०, प्र० भा०, प्रस्ता० पू० १११ ।
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