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श्रीनगर - पहलगाँव से हम लोग २ जुलाईके प्रात ८ बजे रवाना होकर ११ बजे श्रीनगर पहुँचे । श्रीनगरके सन्निकट रास्ते में अवन्तीपुर भी देखा, जहाँ मार्तण्ड मन्दिर जैसा ही हिन्दुओका विशाल मंदिर बना हुआ है और जो भग्नावस्थामें पडा हुआ है । श्रीनगरमें हम विजय होटलमें और ला० मक्खनलालजी मैजिस्टिक होटल में ठहरे । यहाँ ला हरिश्चन्द्र जी और श्री प० कैलाशचन्द्र जी बनारस भी सोभाग्यसे मिल गये । मिलकर बडी प्रसन्नता हुई। इससे पहले पहलगाँव तथा मटनमें भी आपसे भेंट हो गई थी ।
डल लेक आदि दृष्टव्य कुछ स्थान - ४ जुलाईको हमलोग तागो द्वारा डल लेक, शाही चश्मा, निषाद, शालामार और हार्वन बाग देखने गये । ये चारो ही स्थान श्रीनगरके प्रसिद्ध और मनोज्ञ स्थान है । डल लेक एक बडी और मनोरम झील है। झीलमें एक नेहरू पार्क और एक होटल है । हर रविवार को लोग यहाँ सैर करने आते हैं । चश्मा शाहीका पानी सुस्वादु और पाचक है । यहाँसे हमलोग सीधे पहले हार्वन गये यहाँ चश्मोसे निकले पानीकी एक झील है, जो नील वर्ण है। हार्वनके बाद शालामार और निषाद आये । निषाद अति सुन्दर और चित्ताकर्षक है । पहाडसे निकले चश्मेके पानीकी कई जगह ऊँची फाले और फव्वारे बनाये गये हैं । यह बाग भी नूरजहाँकी कृति है, जहाँ वह मनोविनोद और क्रीडाके लिये आती थी । लोग छुट्टीका दिन यही आनन्दसे व्यतीत करते हैं ।
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गुलमर्ग व खिलनमर्ग - ५ जुलाईको हमलोग गुलमर्ग और खिलनमर्ग देखनेके लिये बस द्वारा टनमर्ग गये । मोटर बस टनमर्ग तक ही आती-जाती हैं । यहाँसे घोडो द्वारा उक्त स्थानोको देखने जाना होता है | ये दोनो स्थान ऊँची पहाडीपर हैं । गुलमर्ग एक लम्बा चौडा मैदान है जहाँ अनेक होटल व मकान बने हैं, जिनमें यात्री आकर महीनो ठहरते हैं । यहाँ हम आते-जाते वर्षाक कारण १०-१५ मिनट ही ठहरे । खिलनमर्ग भी एक ऊँचाईपर सुन्दर मैदान है, जहाँ पास ही बर्फकी शिलायें हैं और जिनपरसे यात्री चलते व दोडते हैं और आनन्दानुभव करते है ।
हमने रास्तेमें वह जगह भी देखी, जहाँ तक १९४७ में लुटेरे कबायली अथवा पाकिस्तानी सैन्य दल टिड्डियोकी तरह लूटमार और अपहरण करते हुए आ चुके थे । इस जगहसे श्रीनगर सिर्फ पाँच मील है । उक्त दोनो स्थानोंको देखकर उसी दिन ५॥ बजे शामको हम वापिस श्रीनगर आ गये ।
श्रीनगरके बाजारोमें जितनी बार जायें उतनी ही बार चीजोको खरीदने की इच्छा हो जाती है । यहाँको सूक्ष्म और बारीक कारीगरी अत्यन्त प्रशसनीय है । लकडीका काम, ऊनी व रेशमी कपडेका काम, टोकनियाँ, गब्बे, नमदे और केशर यहाँकी खास चीजें हैं। हाँ, वोटो व शिकारोसे पटी झेलमका दृश्य भी भवलोकनीय है । उसमे हर व्यक्तिको सैर करनेकी इच्छा हो आती है । उसके सातो पुल भी उल्लेखनीय हैं ।
७ जुलाईको श्रीनगरसे N D राधाकृष्ण बस द्वारा रवाना होकर ८ जुलाईको प्रात पठानकोट आ गये और वहाँसे ५-५० पर शामको छूटने वाली काश्मीर मेलसे चलकर ७ जुलाईको प्रात देहली सानन्द आ गये । स्टेशनपर प० बाबूलालजी जमादार, १० मन्नूलालजी शास्त्री, भगत हरिश्चन्द्रजी और छात्रवर्गने हम लोगोका हार्दिक स्वागत कर हमें अपना अनन्य स्नेह दिया । समन्तभद्र सस्कृत विद्यालयमें हम उस समय प्रिंसिपल ( प्राचार्य) रहे ।
काश्मीरके सौन्दर्यकी अभिवृद्धिमें पहलगांव, चन्दनवाडी, अच्छावल, डल लेक, वेरीनाग, कुकरनाग निषाद वा ये स्थान प्रमुख कारण हैं । यहाँ यह खास तौरसे उल्लेखनीय है कि काश्मीर राज्य में, जहाँ ७५ प्रतिशत मुसलिम आबादी है, गोहत्या नही होती — कानूनन बन्द है । वहाँके भोले, भद्र और गरीब लोगोको सुजनता देखने योग्य है। खाने-पीनेकी सभी चीजें सस्ती और अच्छी मिल जाती हैं । कवि क अपनी राजतरगिणीमें जो काश्मीरका विशद वर्णन किया है उससे स्पष्ट है कि काश्मीरका भारतके माथ बहुत पुराना सम्बन्ध है और वह भारतका ही एक अभिन्न प्रदेश रहा है ।
अत काश्मीरके साथ हमारा सास्कृतिक और सौहार्दका सम्बन्ध उत्तरोत्तर बढते रहना चाहिये । ●
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