Book Title: Jain Tattvagyan Mimansa
Author(s): Darbarilal Kothiya
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 400
________________ दर्शन १. अनेकान्तयाद-विमर्ग सोमपा अन्तिीग गम मनेकानगाः, 'बकान्त' (मासिक), पर्ष ११, फिरण', १९५२।। २ स्पाहाय-पिग स्मार, 'प्रशा' माग १, २१४, अगायर १९६८ । ३ संजययाद्विपत्त और ग्यातार •शीपंगतो, 'अनारमि०२, १०८८ । तपा विषयगाणी, लावाय, जन १९८1 ४. जनदर्शन के समन्नययायो यष्टिकोणती मोर्षन यही, 'आज' का बागमी, ४ मा प्रासा १९७०६०। ५ श्रमण-गरगृतिको दिन गम्मृशिमोदन सोपंग यही, महावीर-गगन्ती म्मारिका, जयपुर, १९७१६.। ६० अम्बारगे भेंटगामि अनेकान्स- . ० अम्बटकर और उन निर विनार, 'भनेकान्त', वर्ष १०, किरण ८, दिसम्बर १९४९, मिली। ७ जन सामें गोगा क मामोसन गीर्षक कही, ममाधिमरणोगादीपा,प्रस्तावना, अन्तवर १९६३६०। ८ जैन यर्शन गर्वशता जैन यांनी मगभगानी गभावनाएं, यगिल मा० दर्शन परिपम पठिन सगा Afr' (मागिस) ११, अफ १, जनवर्ग १९६५ म प्रमागित । ९ अर्याभिगम-चिन्तन नदनमें अधिगम-चिन्तन, 'प्रशा', Vol-xu (1), माणी हिन्द गिगि०, वागणगी। १०. शापक्तत्व-विमर्श प्रमाण घोर गय, जैन प्रनाग, अगस्त-सितम्बर १९३८, दिल्ली। ११ ध्यान-विमर्श जैन दर्शन में प्याग-विचार, जिनवाणी, योगाक, जयपुर । न्याय १ भारतीय वाइमगमें अनुमान-विनार जैन तमगाम्नमें मनमान-विचार, गोध-प्रबन्य, प्रास्ताविक, अनुमान-विकास, सक्षिप्त अनुमान-विवेचन, उपसहार, ई० १९६९, योर-सेवा-मन्दिर ट्रस्ट, पाराणसी। न्यायकी उपयोगिता, 'अनेकान्त', यर्ष ९, कि० १। २ न्याय-विद्यामृत इतिहास और साहित्य १ स्याद्वाद-मिद्धि और वादीसिंह २. द्रव्यसंग्रह और नेमिचन्द्र मिशान्तिदेव शीर्षक वही, प्रस्तावना, स्याद्वाद-मिद्धि माणिकचन्द्र दि० जैन ग्रन्थमाला, बम्बई, १९५० ई०1 सम्पादकीय (प्रति-परिचय, प्रस्तावना-ग्रन्थ और अन्यकार, द्रव्यसग्रह, गणेश वर्णी दि० जैन ग्रन्थमाला, वाराणसी, १९६६ । सम्पादकीय (प्रति-परिनय), प्रस्तावना-शासन-चतुस्त्रिशिका और मदनकौति परिशिष्ट, वीर-सेवा-मन्दिर-ट्रस्ट, १९४९ । ३ शासन-मस्त्रिशिका और मदनकोति -३७२

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