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लघुताको मुनि नेमिचन्द्रको लघुतासे अधिक प्रकट किया है । दूसरे दोहेके द्वारा अन्तिम मङ्गल किया है । इस तरह प० जयचन्दजीकी यह रचना भी बडी उपयोगी और महत्वकी है । बालक-बालिकाओको वह अनायास कण्ठस्थ कराई जा सकती है ।
२. नेमिचन्द्र सिद्धान्तिदेव
(क) द्रव्यसंग्रह कर्त्ताका परिचय
इसके कर्ता मुनि नेमिचन्द्र हैं । जैसा कि ग्रन्थको अन्तिम (५८ वी ) गाथासे प्रकट है । संस्कृत टीकाकार श्रीब्रह्मदेव भी इसे मुनि नेमिचन्द्र की ही कृति बतलाते हैं । अब केवल प्रश्न यह है कि ये मुनि नेमिचन्द्र कौन-से नेमिचन्द्र है और कब हुए हैं तथा उनकी रची हुई कौन-सी कृतियाँ है, क्योकि जैन परम्परामें नेमिचन्द्र नामके अनेक विद्वान् हो गये हैं ? इसी सम्बन्धमें यहाँ विचार किया जाता है ।
(ख) नेमिचन्द्र नामके अनेक विद्वान्
१ एक नेमिचन्द्र तो वे हैं, जिन्होंने गोम्मटसार, त्रिलोकसार, लब्धिसार-क्षपणासार जैसे मूर्द्धा न्य सिद्धान्त-प्रन्थोका प्रणयन किया है और जो 'सिद्धान्तचक्रवर्ती' की उपाधि से विभूषित थे तथा गगवशी राजा राचमल्लके प्रधान सेनापति चामुण्डराय (शक स० ९०० वि स० १०३५ ) के गुरु भी थे । इनका अस्तित्वसमय वि० स० १०३५ है ।
२ दूसरे नेमिचन्द्र वे हैं, जिनका उल्लेख वसुनन्दि सिद्धान्तिदेवने अपने उपासकाध्ययन ( गा० ५४३ ) में किया है और जिन्हें 'जिनागमरूप समुद्रकी वेला तरङ्गोसे घुले हृदयवाला' तथा 'सम्पूर्ण जगत् में विख्यात' लिखा है । साथ ही उन्हें नयनन्दिका शिष्य और अपना गुरु भी बताया है ।
३ तीसरे नेमिचन्द्र वे है, जिन्होने प्रथम नम्बरपर उल्लिखित नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्तीके गोम्मटसार ( जीवकाण्ड और कर्मकाण्ड दोनो ) पर 'जीवतत्त्वप्रदीपिका' नामकी संस्कृत टीका, जो अभयचन्द्रकी 'मन्दप्रबोधिका' और केशववर्णीकी संस्कृत - मिश्रित कनडी टीका 'जीवतत्त्वप्रदीपिका' इन दोनो टीकाओंके आधारसे रची गई है, लिखी है ।
४ चौथे नेमिचन्द्र प्रस्तुत द्रव्यसग्रह के कर्त्ता नेमिचन्द्र है ।
१
'द्रव्यसग्रह - भाषा' पद्य न० ६०, वचनिका पृ० ८० । २ वही, पद्य न० ६१, पृ० ८० ।
३
'जह चक्केण य चक्की छक्खड साहिय अविग्घेण । तह मइ चक्केण मया छक्खड साहिय सम्म ॥
कर्मका० गा० ३९७ ॥
४ चामुण्डरायने इन्हीकी प्रेरणासे श्रवणबेलगोला (मैसूर) में ५७ फुट उत्तु ग, विशाल एव ससार - प्रसिद्ध
श्रीबाहुबली स्वामीकी मूर्तिका निर्माण कराया था ।
५ सिस्सो तस्य जिणागम-जलणि हि वेलात रग-घोयमणो ॥
सजाओ सयल-जए विक्खाओ मिचदुति ||५४३ ||
६
तस्य पसाएण मए आइरिय- परपरागय सत्थ । वच्छलयाए र भवियाणमुवासयज्झयण ॥४४४॥
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