Book Title: Jain Tattvagyan Mimansa
Author(s): Darbarilal Kothiya
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 388
________________ श्रमणवेलगोला और श्रीगोम्मटेश्वर श्रमणबेलगोला दक्षिण भारतमें करनाटक प्रदेशमें हासन जिलेका एक गौरवशाली और ऐतिहासिक स्थान रहा है। यह जैन परम्पराके दि० जैनोका एक अत्यन्त प्राचीन और सुप्रसिद्ध तीर्थ है। इसे जनग्रन्थकारोने जैनपुर, जैनविद्री और गोम्मटपुर भी कहा है। यह बेंगलौरसे १०० मील, मैसूरसे ६२ मील, आर्सीकेरीसे ४२ मील, हासनसे ३१ मील और चिनार्यपट्टनसे ८ मील है। यह हासनसे पश्चिमकी ओर अवस्थित है और मोटरसे २-३ घण्टोका रास्ता है। यह विन्ध्यगिरि और चन्द्रगिरि नामकी दो पहाडियोकी तलहटी में एक सुन्दर और मनोज्ञ चौकोर तालाबपर, जो प्राकृतिक झीलनुमा है, बसा हुआ है। यह है तो एक छोटा-सा गांव, पर ऐतिहासिक पुरातत्त्व और धार्मिक दृष्टिसे इसका बड़ा महत्त्व है। दुष्काल जैन अनुश्रु तिके अनुसार ई० ३०० सौ वर्ष पूर्व सम्राट चन्द्रगुप्तके राज्यकालमें उत्तर भारतमें जब बारह वर्षका दुष्काल पहा तो अन्तिम श्रतकेवली आचार्य भद्रबाहके नायकत्वमें १२ हजार श्रमणो (जैन साधुओं) के सघने उत्तर भारतसे आकर इस स्थानकी मनोज्ञता और एकान्तता देखी तथा यही रहकर तप और ध्यान किया। आचार्य भद्रबाहुने अपनी आयुका अन्त जानकर यही समाधिपूर्वक देहोत्सर्ग किया। सम्राट चन्द्रगुप्तने भी, जो सघके साथ आया था, अपना शेष जीवन सघ व गुरु भद्रबाहको सेवामें व्यतीत किया था। इस स्थानको श्रमणबेलगोला इसलिए कहा गया कि उक्त श्रमणों (जैन साधुओ) ने यहाँके वेलगोल (सफेद तालाब) पर तप, ध्यानादि किया तथा आवास किया था। तब कोई गांव नही था, केवल सुरम्य पहाडी प्रदेश था। यहाँ प्राप्त सैकडों शिलालेख, अनेक गुफाएँ, कलापूर्ण मन्दिर और कितनी ही विशाल एव भव्य जैन मतियां भारतके प्राचीन गौरव और इतिहासको अपने में छिपाये हुए हैं । इसी स्थानके विन्ध्यगिरिपर गगवशके राजा राचमल्ल (ई० ९७५-९८४) के प्रधान सेनापति और प्रधान मन्त्री वीर-मार्तण्ड चामुण्डराय द्वारा एक ही पाषाणमें उत्कीर्ण करायी गई श्री गोमेटेश्वर बाहुबलिको वह विश्वविख्यात ५७ फुट ऊंची विशाल मत्ति है, जिसे विश्वके दर्शक देखकर आश्चर्यचकित हो जाते हैं। दूसरी पहाडी चन्द्रगिरिपर भी अनेक मन्दिर व बसतियां बनी हुई हैं। इसी पहाडीपर सम्राट चन्द्रगुप्तने भी चन्द्रगुप्त (प्रभाचन्द्र) मुनि होकर समाधिपूर्वक शरीर त्यागा था और इसके कारण ही इस पहाडीका नाम चन्द्रगिरि पहा । इन सब बातोसे 'श्रमणबेलगोला' का जैन परम्परामे बड़ा महत्व है। एक बार मैसूर राज्यके एक दीवानने कहा था कि "सम्पूर्ण सुन्दर मैसूर राज्यमें श्रमणवेलगोला सदृश अन्य स्थान नहीं है, जहां सुन्दरता और भन्यता दोनोका सम्मिश्रण पाया जाता हो।" यह स्थान तभीसे पावन तीर्थक रूपमें प्रसिद्ध है। परिचय यहां गोम्मटेश्वर और उनकी महामूर्तिका परिचय वहीके प्राप्त शिलालेखों द्वारा दे रहे हैं। शिलालेख न० २३४ (८५) में लिखा है कि-"गोम्मटेश्वर ऋषभदेव प्रथम तीर्थकरके पुत्र थे । इनका नाम बाहु -३६०

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