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यदि आजको मनुष्य मनुष्यसे प्रेम करना चाहता है और मानवताको रक्षा करना चाहता है तो उसे महावीरकी इन सूक्ष्म क्षमा और अहिंसाको अपनाना ही पडेगा। यह सम्भव नही कि बाहरसे हम मनुष्यप्रेमकी दुहाई दें और भीतरसे कटार चलाते रहें। मनुष्य-प्रेमके लिए अन्तस् और बाहर दोनोंमें एक होना चाहिए । कदाचित् हम बाहर प्रेमका प्रदर्शन न करें, तो न करें, किन्तु अन्तस्में तो वह अवश्य हो, तभी विश्वमानवता जी सकती है और उसके जीनेपर अन्य शक्तियोपर भी करुणाके भाव विकसित हो सकते हैं।
क्षमा और अहिंसा ऐसे उच्च सदभाव पूर्ण आचरण हैं, जिनके होते ही समाजमें, देशमें, विश्वमें और जन-जनमें प्रेम और करुणाके अकूर उगकर फूल-फल सकते तथा सबको सुखी बना सकते हैं।
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