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इन्हें हम क्रमश निम्न नामोंसे व्यवहृत कर सकते हैं
१ विधिसाधक विधिरूप
२ विधिसाधक निषेधरूप
३ निषेघसाघक विधिरूप
४ प्रतिपेधसाधक प्रतिषेधरूप
इनके उदाहरण निम्न प्रकार दिये जा सकते हैं
१ अग्नि है, क्योकि घूम है ।
२ इस प्राणी में व्याधिविशेष है, क्योंकि निरामय चेष्टा नही है ।
अविरुद्धोपलब्धि
विरुद्धानुपलब्धि विरुद्धोपलब्धि
faralyada
३ यहाँ शीतस्पर्श नही है, क्योकि उष्णता है ।
४ यहाँ घूम नही है, क्योंकि अग्निका अभाव है ।
(ग) भगवतीसूत्रमे अनुमानका निर्देश
भगवती सूत्र में भगवान् महावीर और उनके प्रधान शिष्य गौतम ( इन्द्रभूति) गणधरके सवादमें प्रमाणके पूर्वोक्त चार भेदोका उल्लेख आया है, जिनमें अनुमान भी सम्मिलित है ।
(घ) अनुयोगसूत्रमे अनुमान-निरूपण
अनुमानकी कुछ अधिक विस्तृत चर्चा अनुयोगसूत्रमें उपलब्ध होती है । इसमें अनुमानके भेदोका निर्देश करके उनका सोदाहरण निरूपण किया गया है ।
१ अनुमान -भेद
इसमें अनुमानके तीन भेद बताये हैं । यथा१ पुण्वव ( पूर्ववत् )
२ सेसव (शेषषत् )
३ विट्ठसाहम्मद (दृष्टसाधर्म्यवत् )
१ पुग्वच - जो वस्तु पहले देखी गयी थी, कालान्तरमे किचित् परिवर्तन होनेपर भी उसे प्रत्यभिज्ञाद्वारा पूर्वलिंगदर्शनसे अवगत करना 'पुन्वव' अनुमान है । जैसे बचपनमें देखे गये बच्चेको युवावस्था में किंचित् परिवर्तनके माथ देखनेपर भी पूर्व चिह्नों द्वारा ज्ञात करना कि 'वही शिशु' है । यह 'पुवव' अनुमान क्षेत्र, वर्ण, लाछन, मस्सा और तिल प्रभृति चिह्नोसे सम्पादित किया जाता है । २ सेसव - इसके हेतुभेदसे पांच भेद हैं
१ घर्मभूषण, न्यायदी० पृ० ९५ - ९९, वीरसेवामन्दिर, दिल्ली ।
२ माणिक्यनन्दि, परीक्षामु० ३।५७-५८ ।
३ तुलना कीजिए -
१ पर्वतोऽयमग्निमान् धूमवत्वान्यथानुपपत्तेः -- घर्मभूपण, न्यायदी० पृ० ९५ । २ यथाऽस्मिन् प्राणिनि व्याधिविशेषोऽस्ति निरामयचेष्टानुपलब्धे ।
३ नास्त्यत्र शीतस्पर्श औप्ण्यात् ।
४ नास्त्यत्र घ्मोऽनग्ने । माणिक्यनन्दि, परीक्षामु० ३।८७, ७६, ८२ ।
४ गोयमा णो तिणट्टे समट्ठ े । से कि त पमाण ? पमाणे छउबिहे पण्णत्ते । त जहा - पञ्चक्खे अणुमाणे
ओवम्मे जहा अणुयोगद्दारे तहा णेयव्व पमाण । भगवती ०५, ३, १९१-९२ ।
५, ६, ७ अणुमाणे तिविहे पण्णत्ते । त जहा - १
पुव्वव, २ सेसव, ३ दिट्ठसाहम्मव । मे कि पुव्वव ? पुग्वव---
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