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श्री जैन सिद्धान्त वोल संग्रह, आठवों माग
वोल भाग पृष्ठ
विषय प्रशस्त मन विनय के ५०० २२३१ मात भेद
अपशस्त वचन छः ४५६ २६२
१ अमानुतक
३५६ १३७३ अवद्धिक निह्नव का मत ५६१ २ ३८४ अब्रह्मचर्य का स्वरूप ४६७२१६७ अत्रह्मचर्य के अठारह भेद ८६३५ ४१० अभग्गसेन चोर की कथा ६१० ६३७ अभयकुमार की कथा पारिणामिकी बुद्धि पर अभवसिद्धिक(अभव्यजीव) ८ १ ७
१५ ६ ७४
सू१८५, सू २०
ठा ६३५२७, प्रत्र. द्वा. २३५
गा १३११, बृ (जी) उ ६
प्रमशस्त वचन विनय ५०२२ २३२ भ ग २५ ७८०२ला ७उ ३
के सात भेद
सू ५८५
अभिगम पॉच
अभिगम पॉच श्रावक के ३१४
अभिगम रुचि
अभिग्रह पच्चक्रखारण
६२४ ३
१
२१
प्रमाण
भग २५, ७सू. ८०२ हा ७३.३
६६३ ३
७०५ ३
टा २३.२ ७६,श्रा प्रगा ६७
अभव्य और मोक्ष
४२४ २६
आगम
अभव्य जीव ऊपर कहॉ ६८३ ७ ११३ प्रवद्धा १६०गा १०१६टी, म तक उत्पन्न होते है?
श १ उ २
अभव्या परिपद (अच्छे रा ) ६८१ ३ २७६ टा १०३ ३८ ७७७,प्रवद्धा १३८
ठा ५३१ सू३६६ विशेग। २५०६ से २५४६
आह अ४१६४२
विश्र ३
न मू २७गा ७२,आव होगा,६४६
गा. ८८५
१६७ भग २ उ.३ सु १०६
३१५ भ.श. २ उ ५ सृ १०६
३६३ उत्त अ २८ गा २३
३८१ प्रवद्भा ४गा. २०२, पचा ५गा १०,
श्राव ह६ निगा १५६७
१ टगड और गर्मी के परिपट को सहन करने वाला अभिग्रह धारी साधु |