Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 08
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

View full book text
Previous | Next

Page 381
________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह,पाठवा भाग विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण सोलह भेद वचन के ८६६ ५ १७० पनप ११सू १७३, माचा श्रु २ चू १८ १३३१ सोलह महायुग्म ८७१ ५ १७२ भश ३५उ १ सू ८५५ सोलह विशेषणद्रव्यावश्यकके८७२५ १७६ अनु सू १३, विशे गा८५१-५७ सोलह सतियां ८७५ ५ १८५- ठाउ ३सू ६९ १टी झा अ १६, ३७५ त्रिष पर्व १,२,७,८,१०,पचा १६गा ३१,चन्दन ,राज ,भरत गा८-१०, आवह सोलह सतियों के लिये ८७६ ५ ३७५ प्रमाण भूत शास्त्र सोलहस्थान(ग्रामादि)साध८६७ ५ १६६ वृ उ १सू ६ के लिये कल्पनीय हैं सोलह स्वम चन्द्रगसराजा ८७३ ५ १७८ व्यव चू हस्तलिखित के और उनका फल सौधर्म देवलोक का वर्णन ८०८४ ३१६ पनप २ सू.५२ सौर्यदत्त की कथा ६१०६ ४६ विश्र८ १ स्कन्ध बीज ४६६ २ ६६ दश अ४ स्तनितकुमारकेदसअधिपति७४० ३ ४२० भ श.३३ ८सू. १६६ स्तम्भ की कथा औत्पतिकी:४६ ६ २६६ नंसू २७ गा ६३ टी. बुद्धि पर २ स्तिबुकसंकेत पञ्चक्रवाण५८६ ३ ४३ प्राव इअ६गा १५७८, प्रवद्वा । स्तूप की कथा पारिणा- ११५६ ११७ उत्त (क) १गा ३टी,निर.,न. मिकी बुद्धि पर सू २७गा ७४,भाव ह गा ३५१ १ जिस वनस्पति का स्कन्ध भाग वीज का काम देता है, जैसे शलकी भादि । २ पचक्खाण करने में एक तरह का सकेत, पानी रखने के स्थान पर पड़ी हुई धूद जव तक सूख न जाय अथवा जव तक भोस की बूदे न सूखे तब तक का पचखाण।

Loading...

Page Navigation
1 ... 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403