Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 08
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

View full book text
Previous | Next

Page 388
________________ श्री सेठिया जैन प्रन्यमाला विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण हेतु दोष ७२२ ३ ४.४ ठा १०३ :७४३ हेतु विरुद्रापलब्धिके भेद५५५ २ २६६ रत्ना परि ३५८३-६२ हस्व संस्थान ५५२ २ २६३ टा ११ १७,ठा ७उ ३मृ ५४८ न्यूनाधिकमशुद्ध वा, यहा स्याहीप्रमादितम् । दुष्कृतं तस्य मिथ्याऽस्तु. क्षन्तव्यं तच ज्ञानिभिः॥ भावार्थ-श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह के सात भागों में तथा उनके चिपयानुक्रममूचक इस आठवें भाग में बुद्धि प्रमाद से जो न्यून, अधिक अथवा अशुद्ध लिखा गया हो उससे होने वाला पाप निप्फल हो एवं ज्ञानी पुरुष उसके लिये क्षमा करें। अन्तिम मंगल कामना क्षेमं सर्वप्रजानां प्रभवतु बलवान् धार्मिको भूमिपालः । काले काले च वृष्टिवितरतुमघवा व्याधयोयान्तुनाशम्।। दुर्भिक्षं चौरमारी क्षणमपि जगतां मास्म भूज्जीवलोके । जैनेन्द्र धर्मचक्रं प्रसरतु सततं सर्वसौख्यप्रदायि ।। ___ भावार्थ-सकल प्रजाजनों का कल्याण हो,राजा बलवान् और धर्मात्मा हो, वृष्टि यथासमय हया करे, सभी रोग नष्ट हो जायें, दुभित(दुष्काल), चोरी और महामारी आदि दुःश्व ससार में कभी किमी भी प्राणी को न सतावे और रागदपक विजेता श्रीजिनेश्वर देव द्वारा प्रतिन, मर्व मुग्वों को देने वाले धर्मचक्र का सदा सर्वत्र विस्तार दी। शान्ति ! शान्ति ! शान्ति !!!

Loading...

Page Navigation
1 ... 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403