Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 08
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 305
________________ श्री जैन सिद्धान्त चोल संग्रह, आठवाँ माग बोल भाग पृष्ट प्रमाण ७०० ३३७१ ठा. १० उ. ३ ७४१, पन्न प १९ सू १६५, ६, अधि ३श्लो. ४१५. १२२ ७१२ ३ ३८७ टा १०३ ३ ७५२ भ श ७३.८ ५७८ ३ १६ ठाउ ३ सू५६७ ठा ८ ३ सू ५६७ विषय मान निःसृत असत्य मानसंज्ञा माया का फल माया की आलोया के ५७७३ १६ आठ स्थान माया की आलोयणा न करने के आठ स्थान माया के चार भेद और १६१ ११२१ पन्न. १ १४सू १८८, ठा४उ २ सू २६३, कर्म. भा१गा. २० उनकी उपमाएं सम ५२ सम ५२ प्रवद्वा ६ जगा ५६७, ध श्रधि ३ श्लो २२५४०, पिनिगा ४०८, पि.वि.गा.. पंचा १३गा १८ माया निःसृत असत्य ७०० ३ ३७१ ठा. १०.७४१, पन १११ मू १६४, अधि ३श्लो ४१ १२२ १ मायाप्रत्यया क्रिया २६३ १२७८ ठा २३ १ सु ६०ला ५३ २सू. ४१६, पन्न २२ २८४ मायावी भावना ४०३ १ ४३० उत्तम ३६गा. २६३, प्रवद्वा ७३ मा ६४३ मग ३ १०४ १ ७३ माया संज्ञा ७१२ ३ ३८७ या १० उ. ३ ७५२, १ छल एन माया द्वारा दूसरों को उगने के व्यापार में लगने वाली क्रिया । माया के चौदह नाम माया के सत्रह नाम माया दोप माया शल्य ३५७ ५७८ ३ १८ टा८३ सू५६७ ८३६ ५ ३१ ८६०५ ३८५ ८६६ ५ १६५ ३ ३ १८२, ध. विलो २७टी पृ. ७६ ७३८

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