Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 08
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 329
________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, श्राठवाँ भाग २८१ चिपण बोल भाग पृष्ठ प्रमाणा विगत मिश्रिता सत्यामृपा ६६६ ३ ३७० ठा १०सू ७४९,पन्न प ११सू. १६५,ध अधि ३श्लो ४१पृ १२२ विगय दस ७८६ ३ ३८२ पाच हश्र ६गा १६०१पृ८५३ विगय ना ६३० ३ १७५ टाउ ३सू.६७४,पात्र ह भगा १६०१ पृ.८५३ टी. विग्रहगति नारकी जीवों की५६० २ ३४० भश १४२ ११५०२ १ विचिकित्सा २८५ १ २६५ उपा अ.१सू ७, श्राव हम ६ विच्छिन्न बोल दस ६८२ ३ २६२ विशेगा २५६३ विजयको विषयमें ८गाथाएं ६४ ७ १६८ विजय बत्तीस ६७१ ७ ४३ नं वन ४सू ६३-१०२,लोक भा २ स १७ विज्ञ (जीव का एक नाम) १३० १ ६८ भश २उ.1 सू८८ विपीया(वैनयिकी)बुद्धि २०१ ११५६ न सू २६गा ६ १,ठा.४ सू. ३६४ विदेह,विदेह दिन्न(महावीर)७७० ४ ४ जनविद्यावोल्युम १न १ विद्यमान पदार्य की अनु- ६१४ ६ ७१ विशे गा.१६८३ टी पलब्धि के इक्कीस कारण २ विद्या दोप ८६६ ५ १६५ प्रवद्वा ६७गा ४६८,ध मधि: ग्लो २२सी.४०,पि नि गा ४०६, पि विगा ५६, पचा.१३गा १६ ३ विद्याधर ४३८ २ ४३ टा ६८ ४६ १,पन्न प १सृ.३७ विद्यत्मागेंफेदसथाधिपति७३४ ३ ४१८ भरा. ८ स १६६ १ मागम तथा युक्ति संगत किया विषय में फल के प्रति संदेह करना। २ स्त्री रूप देवता मविष्टित जप होमादि से सिद्ध होने वाली विद्या का प्रयोग परके भादारादि लेना। तान्य पर्वत अधिवासी प्राप्ति भादि विद्यामों को धारण करने वाले विशिष्ट शचि सम्पन्न व्यक्ति ।

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