Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 08
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 343
________________ था जन सिद्धान्त चाल समह, पाठवा भाग २१५ विपय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण श्रमण (समण,समन) की १७८ १ १३१ दश श्र.नि.गा १५४-१५७, चार व्याख्याएं अनुसू १५०गा.१२६-१३२ श्रमण की वारह उपमाएं ८०५ ४ ३०६ अनुसू १५० गा १३१ श्रमण के पाँच प्रकार ३७२ १ ३८७ प्रब द्वा ६ ४गा ५३१ श्रमण को सर्प पर्वत आदि १७८ १ १३१ दश अ २नि. गा.१५४.१४५, बारह वोलों की उपमा अनुसू १५० गा १२६-१३२ श्रमण धमे दस ६६१ ३२३३नव गा २३,सम १०,शा भा १प्रक ८ १ श्रमण बनीपक ३७३ १ ३८६ ठाउ : सू.४५४ श्रमरणोपासक श्रावक के ८८ १६४ ठा.३उ ४ सू २१०. तीन मनोरथ श्रामण्यपूर्विका अध्ययन७७१ ४ ११ दश अ २ की ग्यारह गाथाएं श्रावक का मूत्र पढ़ना क्या ६१८६१५१ न सू ५२,एम.१०२,उत्त अ. शास्त्र सम्पत है ? २१गा ,उत्त अ'२२ गा ३२, ज्ञाय १२सू. २,उव सू४१, श्रावक की आदर्श,पताका,१८५ १ १३६ ठा४३ ३ सू ३२१ स्थाणु,रवरकण्टक से समानता श्रावक कीग्यारहपडिमाएं ७७४ ४ १८ दशा द ६,सम ११ श्रावक के अणुव्रत पॉच ३०० १ २८८ भावह अ६ पृ८१७.८०६, ठा सु२८६,उपा श्र.१सू ६, धमधि २श्लो २३.२६५७६७ श्रावक के अन्य चारप्रकार१८५ १ १३६ या ४ उ ३सू ३२१ श्रावक के इक्कीस गुण ६११ ६ ६१ प्रब द्वा २३६ गा १३४६-१८, ध अधि १ग्लो २०१२८ १ जो दाता श्रमणों का गला है उसक घागे प्रमणदान की प्रशसा र भिक्षा लेने चाला याचक अमया दनीपक कहलाता है।

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