Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 08
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 347
________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल सभह, पाठवाँ भाग २६६ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति ४७२ २ ७७ पन्न,प १सू १२टी ,भ श ३उ १ सू १३०, प्रव.द्वा २३२ गा १३१७, कर्म भा १गा.४६ श्वावनीपक ३७३ १ ३८८ ठा.५२ ३ सू.४५४ श्वास तथा उच्छ्वास ५५१ २ २६२ ज वन.२ सू १८ श्वासोच्छासनारकियों का५६० २ ३३७ जी.प्रति उसू८८ पटपुरिम नवस्फोटका ४४८ २ ५३ ठाउ ३ सू ५०३,उत्त.म २६ प्रतिलेखना गा०५ * पडजग्राम की सात ५४०२ २७३ अनुसू. १२७गा.३६,ठा..उ ३ मूर्छनाएं सू ५५३,सगीत पड्ज स्वर ५४० २२७१अनुसू १२७गा २५,ठा ७सू ५५३ पाण्मासिकीभिक्ख पदिमा७:५५ २८8 सम.१२, भ श.२७ १ सू६३ टी,दशा द७ संकर दोष १ संकिय दोष ५६४ ३ १.४ प्र मी भध्या १मा १सू ३३ ६६३ ३ २५२ प्रवद्वा ६७ गा ५६८११४८, पिनिगा १२०,ध अधि ३श्लो. .२टी १४१,पचा १३गा.२६ श्री जैनसिद्धान्त योल सग्रह भाग ,२७३ पर पड़जग्राम की सात मुरनाए छपा है वे सगीत शास्त्र नामक ग्रन्थ से ली हुई है। अनुयोग द्वार तथा स्थानाग सून म पग्राम की मुनामों के नाम दूसरी तरह दिये हैं। उनकी गाथा इस प्रकार है मगी कोरविश्रा हरिया, रयणी य सारकंसा य । छट्ठी व सारसी नाम, सुसज्जा य सचमा ।। मर्थ---मार्गी, कोरवी, हरिता, रत्ना, सारकाता, सारमी और शुद्ध पहजा। १ भादारी माधाकर्म मादि दोषों की शका होने पर भी उसे लेना ने किया नफितादोष है।

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