Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 08
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner
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श्री जैन सिद्धान्त बोल संह, प्रावाँ माग
विपय
सत्रह द्वार शरीर के
सत्रह प्रकार का मरण
सत्रह प्रकारका संयम
बोल भाग पृष्ठ
८८ १ ५ ३८५ पन्न प २१
सत्रहवातों की अपेक्षा अत्रै - ४६७ २ २२३ दिक दर्शनों की परस्परतुलना सत्रहवातकीपेक्षा वैदिक ४६७ २२१४
दर्शनों की परस्पर तुलना
सत्रह माया के नाम
सहरा चार
८८५ ५ ३६५
सत्रह प्रकार का संयम सहकार की विहायोगति८२ ५ ३८६ सत्रह बातें चरम शरीरी को८८६ ५ ३६५ ध वि श्रध्या =सू ४८४-४८६ प्राप्त होती हैं
८७६ ५ ३८२सम १७, प्रव द्वा १५७गा १००६ ८८४ ५ ३६३ सम १७, प्रवद्वा ६६ गा ५५६, आवद्द प्र४ ६५१
प्रवद्वा ६६गा ५४५ पनप १६मू २०४
सन्तोष सुख सन्मति (महावीर )
ममाण
८८०५ ३८५ सम ४२ (मोहनीय के नामोंमें) सत्रह लक्षणभाव श्रावक के८८३ ५ ३६२ व प्रविश्लो २२टी ४६ १ सदा विग्रहशीलता ४०५ १४३२ उत्त श्र ३६ २६४, प्रवद्वा
७३ मा ६४५
१८६ १ १४२ उत य २८ २८ अधि २ ग्लो २२टी पृ.४३
सद्दाल (मकडाल) पुत्रश्राव रु ६८५ ३३१६ सनत्कुमार चक्रवर्ती ८१२ ४ ३८४ सनत्कुमारदेवलोक का वर्णन ०८ ४३२१
३०७
७६६६४५४
७७० ४ ८
आय ७
त्रिप पर्व४ ७
१२ १३
ठा १०३ ३७३७ जनविया बोल्युम १ १
1
१ मुरी गायना का एक भेद, हमेना लाई भागडे करते रहना, करने के बाद पश्चात्ताप करना, दूसरे के समाने पर भी न होना और सदा विरोध भाव रखना ।

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