Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 08
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

View full book text
Previous | Next

Page 339
________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संश, पाठवाँ गाग २६१ ~ ~ ~ rrernmrimur rrrrrn. विपय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण शत सहस्त्र की कथा औत्प-६४६ ६ २८२ न सू.२७ गा ६५ टी त्तिकी की बुद्धि पर . शनैश्वर संवत्सर ४०० १ ४२८ ठा. उ ३सू ४६० ,प्रव द्वा १४२ १ शवल दोप इक्कीस ११३ ६ ६८ दशा.द २,सम २१ शब्द के दस प्रकार ७१३ ३ ३८८ ठा १०उ ३सू ७०५ शब्द नय ५६२ २ ४१७ अनुसू १५२,रत्ना परि ७सू.३२ शब्द परिणाम ७५० ३ ४३४ ठा १०८ ३सू ७१३,पन्न प: १३ सू १८४-१८५ शम्ब के साहस काष्टा- ७८० ४ २५२ प्राव ह.नि गा १३४, पीठिका न्त भाव अननुयोग पर नि गा १७२ २ शम्कावर्त्ता गोचरी ४४६ २ ५२ ठा ६उ ३सू ५१४,उत्तम ३. गा १६,प्रवद्वा गा ७४५, ध अधि ३श्लो २२ टी पृ३७ शयन पुण्य ६२७ ३ १७२ ठाउ ३ सृ.६७६ शय्यातर पिण्ड कल्प ६६२ ३ २३७ पचा १७ गा १७ - १६ शय्यादाता अवग्रह ३३४ १ ३४५ भश १६उ रमू.५७६,प्रवद्रा ८गा ६८१-६८४, याचा. ५२चू १५ र २सू१६२ शरट (गिरगिट)की कथाह४६ ६ २६२ नं पू २७गा ६३ टी औत्पत्तिकी बुद्धि पर शरीर,यात्मा की भिन्नता ४६६ २१०७ रासु ६३-७४ विपयकपरदेशीराजाकेछःप्रश्न शरीर कीव्याख्या और ३८६ १ ४१२ ठा. उ.१सू ३६५,पन.प २१सू उसके भेद ___ २६७, कर्म भा १गा ३३ १ जिन कार्यो से चारित्र को निर्मलता नष्ट हो जाती है उन्हें शवलदोष कहते हैं। २ गस के पावर्त की तरद वृत्त (गोल) गति वाली गोचरी।

Loading...

Page Navigation
1 ... 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403