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श्री जैन सिजान्त बोल संह, श्राठवाँ भाग
२१?
विपय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण । मुष्टि संकेत पच्चक्खाण ५८६ ३ ४३ प्राव ह अ६ नि गा १५७८,
प्रव.द्वा ४ गा २००
७५ १ ५४ टा.३ र ४ सू २०३ * मूर्छना२१तीनग्रामोंकी५४० २ २७३अनु स् १२७,ा ७सू ५५ ३,सगीत मृत कर्म का अमूर्त आत्मा ५६० ३ ४७ विशे अग्निभूतिगणधरवाद पर प्रभाव मूल गुण
५५ १३२ सूय य १४नि गा १२६,पचा गा २ मूलगोत्र मात ५४२ २ २७६ ठा. उ ३ सृ ५५१ मूल कर्म दोप
८६६ ५ १६६ प्रब द्वा ६७गा ५६८,ध अधि ३
श्लो २२टी पृ४०,पिं निगा ४०६,
पि विगा५६,पचा १३गा १९ श्री जैन सिद्धान्त वोलसग्रह भाग २ ४२७३ पर पड्ज, मध्यम और गान्धार ग्रामों की जो इक्की स मूछनाए छपी है वे सगीतशास्त्र नामक ग्रन्थ से ली हुई है। अनुयोगद्वार तथा स्थानाग सूत्र में इन तीनों ग्रामों की मूर्छनायों के नाम दूसरी तरह दिये हैं। उनकी गाथा इस प्रकार है -
मगी कोरविा हरिया, रयणी असारकंता य । छट्ठी अ सारसी नाम, सुद्ध सज्जा य सत्तमा ॥३९॥ उसरमंदा स्यणी, उत्तरा उत्तरासमा। समोक्कता य सोवीरा, प्रभिरूवा होइ सत्तमा ।।४०|| नंदी अ खुद्दिा पुरिमा य, चउत्थी सुद्धगंधारा। उत्तरगंधारा घि असा पंचमिश्रा हवह मुच्छा ॥३१॥ सुटुत्तरमायामा सा छट्ठी सव्वनो य णायव्वा ।
अह उत्तरायया फोडिमाय, सासत्तमी मुच्छा ॥४२॥ अर्थ - १५ ग्राम की सात मईनाए-मागा, वोरवी, हरिता, रत्ना, सारकांता, सारसी
भोर गुपजा । मध्यम ग्राम की सात मृहनाए-उत्तामदा, रत्ना, उत्तरा, टत्तरासमा, लमकांता, मुजीरा और अभिरूपा । गान्धार ग्राम की मात मुईनाएं-नदी, नुद्रिका धरिमा, गुदगान्धाग,उत्तरगान्धारा,मुतग्मायामा और उलगयतकोटिगा।