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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवाँ भाग
१६७
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विषय
बोल भाग पृष्ठ प्रमाण निहवतीसरा(अव्यक्तदृष्टि)५६१ २ ३५६ विशे गा-२३५६ -२३८८ निह्नव दुसरा (तिष्यगुप्त) ५६१ २ ३५३ विशे २३३३-२३५५ निह्नव पहला (जमाली या ६६१ २ ३४२ विशे गा २३०६-२३३२,भ बहुरत)
श १३ १,भ श उ ३३,पाव
हअ ११३१२ निव पाँचवॉ(आयगंग) ५६१ २ ३६६ विशे गा २४२४-२४५० निह्नव सात ५६१ २ ३४२ विशे.२३.०-२६२०, ठा,सू
५८७,भ.श.१उ.१,भश उ
३३,ग्राव ह ध १गा ७७८-७-८ निह्नवसातवां-गोष्ठामाहिल५६१ २ ३८४ विशे गा २५०६-२५४६ नील लेश्या
४७१ २ ७३ ४७१ २ ७३ उ
उत्तम ३४,कर्म.भा ४गा १३ नंगमनय और उसके दो ५६२ २ ४१२ रत्ना परि ७सू ७,तत्त्वार्थ अध्या. तथा तीन भेद
१,न्यायप्रअध्या.५,द्रव्य तथध्या ६ नैपुणिक नौ ६४२ ३ २१३ ठाउ ३ सू ६५६ नैरपिकचारवोलोंसेमनुष्य १४० १ १०३ ठा ४उ १ सू.२४५ लोक में आने में असमर्थ है नैरुक्त भाव प्रमाण नाम ७१६ ३ ४.१ अनु मू १३० नैपधिक
३५७ १ ३७२ ठा ५उ १सू ३६६ नैधिकी (निसीहिया) ६६४ ३ २५० भ श २५उ असू८० १,ठा १० समाचारी
उ३ ७४६,उत्त अ २६गा
२-७,प्रवद्धा १०१गा ७६० नैसर्गिक सम्यक्त्व १० १६ ठा २उ १सू ७०,पन्न प १सू.३७,
तत्त्वार्य.अध्या १ सु.३ नैसप निधि . ६५४ ३ २२० ठा.६उ ३ सृ६७३ नेसृष्टिकी(नेसत्थिया) २६५ १ २८० ठा २उ १सू.६०,ठा ५उ २सू
४१६, याव.ह.अ.४१६१३
क्रिया