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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवाँ भाग
विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण तीर्थङ्कर चौवीस भरत क्षेत्र६२६ ६ १७७ सम १५७,प्राव ह नि गा.२० के वर्तमान अवसर्पिणी के
से ३६०,पाव म गा २३१ से
३८६,स. श ,प्रव द्वा ७-४५ तीर्थकर दीक्षा लेते समय ८३ ७ १०२ अाचा त्रु २ च ३ अ २४ सू. किसे नमस्कार करते हैं?
१७६, प्राव ह अ१ पृ १८६ तीर्थग्नामकर्म के २०योल५६० ३ ७८
श्राव ह नि गा १७६-१८१
पृ११८ज्ञा असू ६४,प्रव. तीयङ्करनामकर्मकेर बोल०२ ६ ५ ।
द्वा१• गा ३१०-३१६ तीर्थङ्कर सम्बन्धी५० बोल १२६ ६ १८८ ।
सम १५७,श्राव ह.गा २०६. तीर्थकर सम्बन्धी२७वोलाह२६ ६ १७८ ! ३६०,भाव म गा २३१का लेखा व अन्य २३ बोल
३८६,स श ,प्रव द्वा ७-४५ तीर्थङ्कर सिद्ध ८४६ ५ ११७ पन.प १ सू तीर्थङ्करों ने पाँच महाव्रत ६८३ ७ ११६ भश १उ ३ सू ३७टी , उत्त और चार महाव्रत रूप धर्म
अ २३ गा २३ से २७ अलग अलग क्यों कहा? तीर्थ की व्याख्या और भेद१७७ १ १३० ठा ४ उ.४ सू ३६३ टी तीर्थ सिद्ध
८४६ ५ ११७ पनप १ सू७ तीस अकर्मभूमि ६५७ ६ ३०७ पन्नप, १ सू ३७ तीस द्वार नरकों के ५६० २ ३३८ जी प्रति ३ उ १,२,३ तीस नाम परिग्रह के ६५८ ६ ३१० प्रश्न प्राश्रवद्वार । तीस प्रकार भिक्षाचर्या के १५९६ ३१० उव सृ १६,भ रा २५७ तीस महामोहनीय के बोल:६० ६३१० दशा द६,सम ३०,उत्त अ३१
'गा १६टी,प्राव ह भ पृ६६० तुम्बेका दृष्टान्त ६०० ५ ४४१ ज्ञा० ५०६ तृणवनस्पतिकाय आठ ६१२ ३ १२६ या ८उ ३ सू ६१३