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(१७ का प्रभाव होकर पर्याय में अन्तरात्मापना प्रगट होता है और फिर एक रुप मात्मा में परिपूर्ण लीनता करके परमात्मापना प्रगट होता है ऐसा मानकर
परमात्मापना प्रगट करना यह जानने का लाभ है। प्रश्न (२२)-जीव एक प्रकार का, पर्याय में तीन प्रकार का
ऐसा जानने वाला जीव क्या जानता है ?
उत्तर-मेरे एक रुप त्रिकाली भगवान के प्राश्रय से ही
सम्यग्दर्शन है, श्रावकपना है, मुनिपना है, श्रेणीपना है, अरिहत सिद्धपना है, पर के आश्रय से, नौ प्रकार के पक्षों के पाश्रय से नहीं हैं ऐसा जानने वाला जीव एकमात्र प्रफ्नी ही मोर देखता है और क्रम से निर्वाण को
प्राप्त करता है। प्रश्न (२३)-जीव कितने हैं और कहाँ कहाँ रहते हैं ? उत्तर-जीव अनन्त है और सम्पूर्ण लोकाकाश में रहते हैं ! प्रश्न (२४)-जीव मनन्त हैं यह कब माना कहा जावेगा ? उत्तर-(१) मैं जीव द्रव्य अपने द्रव्य क्षेत्रकाल भाव से हूँ पर
जीवों के द्रव्य क्षेत्र काल भाव से नहीं हूँ। प्रत्येक जीव अपने अपने द्रव्य क्षेत्र काल भाव से है, दूसरे जीवों के द्रव्य क्षेत्र काल भावों से नहीं हैं ऐसा ज्ञान होने पर मैं दूसरे जीवों का भला या बुरा कर सकता हूं, या दूसरा जीव मेरा भला या बुरा कर सकता है, प्रश्न उपस्थित नहीं होगा