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( १५० ) उत्तर-'बिस्तर' में आहार वर्गणा के जितने परमाणु हैं वह सब
परमाणु एक एक ब्यंजन पर्याय और अनन्त अर्थ पर्याय सहित बिराज रहे हैं। इससे मेरा किसी भी प्रकार का सम्बंध नहीं है। मैं तो ज्ञायक भगवान हूँ, ऐसा जिसको अपना ज्ञान हो वह जीव बिस्तरा' को समानजातीय
द्रव्यपर्याय कह सकता है क्योंकि उसे भेद विज्ञान है। प्रश्न १४६)--मनुष्य क्या हैं ? उत्तर-असमानजातीय द्रव्यपर्याय है। प्रश्न (१५०)-मनुष्य असमानजातीय द्रव्यपर्याय कब कहा जा
सकता है, और कौन कह सकता है ? उत्तर -(१) 'मनुष्य' प्रात्मा ज्ञायक स्वभावी है । पर्याय
मैं मूर्खता है और मूर्खता एक समय की है। यह अपने ज्ञायक स्वभावी आत्मा का प्राश्रय ले, तो मूर्खता उसी समय दूर हो जाती है। (२) औदारिक शरीर, तेजस शरीर, कार्माण शरीर भाषा और मन में एक एक परमाणु अपनी एक व्यंजन पर्याय और अनन्त अर्थपर्याय सहित विराज रहा है। मात्मा से इन सबका निश्चय-व्यवहार से कोई सम्बंध नहीं है। (३) जो ऐसा जानता हो और अपनी आत्मा का अनुभव हो तो उसका कथन "मनुष्य" असमामजातीय द्रव्य
पर्याय है- कहा जावेगा। प्रश्न (१५१)-'नींबू का पेड़' किस किस अपेक्षा, कौन कौन सी
पर्याय कही जा सकती है, और कब ?