Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 03
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 183
________________ ( १७७ ) उतर - वह बदलने पर भी 'जैसी की तैसी' रहती है, वह की वह नहीं । 'जैसी की तैसी' अर्थात् शुद्ध, शुद्ध रहने से सादिश्रनन्त कहा है। प्रश्न ( ३१३ ) - क्षायिक पर्याय सादिअनन्त है इसको जानने से क्या लाभ है ? उत्तर - अपने द्रव्य गुण प्रभेद ग्रनादिग्रनन्त स्वभाव का श्रय लेकर क्षायिक पर्याय प्रगट करने योग्य है ऐसा जानकर क्षायिक पर्याय प्रगट करे, यह लाभ है । प्रश्न ( ३१४ ) - अनादिसांत क्या है ? उत्तर -- जो जीव अनादिश्रनन्त अपने स्वभाव का आश्रय लेता है उस जीव का ससार जो अनादि से है उसको सांत कर देता है इसलिए संसार पर्याय को अनादि सांत कहा है । प्रश्न ( ३१५ - सादीसात क्या है ? उत्तर - मोक्षमार्ग. अर्थात् साधक दशा । प्रश्न (३१६ ) - मोक्षमार्ग सादिसांत है इसको जानने से क्या लाभ है । उत्तर - ( १ ) ज्ञानी जीव साधक दशा का प्रभाव करके साध्य दशा जो सादिश्रनन्त है उसको प्रगट करते है । ( २ ) अज्ञानी जीव अपने स्वभाव का आश्रय लेकर सादिसांत मोक्षमार्ग प्रगट करे, यह जानने का लाभ ह प्रश्न ( ३१७) -- उत्पाद व्ययं ध्रोव्य जानने के लिए प्रवचनसार की किस किस गाथा का विशेष रूप से रहस्य जानना चाहिए ? उत्तर- प्रवचनसार गा० ६६, १०० तथा १०१ का रहस्य जानना चाहिए ।

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