Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 03
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 196
________________ (१६०) प्रश्न (३६८)--पुद्गल परमाणु का निश्चयबंध समझ में नहीं पाया ? उत्तर पुद्गल के स्पर्श गुण की स्निग्ध या रुक्ष पर्याय में दो प्रश है, चार अश है, छह अंश हैं, वह स्पर्श गुण की स्निग्ध, रुक्ष पर्याय में दो अधिक का होना यह परमाणु का निश्चयगंध है। प्रश्न (३६६ )-पुद्गल का व्यवहारबंध क्या है ? उत्तर--(१) प्रौदरिक शरीर, (२) कार्माण शरीर, (३) तेजस शरीर यह सब पुद्गल का व्यवहार बंध है । प्रश्न (३७०)-परमाणु के निश्चयबंध में बंध की परिभाषा कैसे घटी ? उत्तर--परमाणु एक-स्निग्ध और रुक्ष में दो अंश. चार अंश, यह दूसरी चीज हैं। कहने में एक आता है। ज्ञानी अलग अलग जानते है। इसप्रकार बँध की परिभाषा घट जाती है। चार अश प्रादि को भी चीज़ करने में प्राता है। प्रश्न (३७१)-ौदारिक, कार्माण, तेजसशरीर में बंध की परिभाषा कैसे घटी ? उत्तर-औदारिक प्रादि शरीर अनेक पुद्गलों का स्कंध हैं यह अनेक है । कहने में एक आता है। ज्ञानी प्रत्येक परमाणु को पृथक पृथक जानते हैं इसलिए बंध की परिभाषा घट गई। प्रश्न (३७२)-प्रात्मा. बंध और मोक्ष में अकेला है ऐसा कोई शास्त्र का दृष्टान्त है ? उत्तर श्री प्रवचनसार के परिशिष्ट में ४५ वें नय में बताया है कि निश्चयनय से प्रात्मा अकेला ही बद्ध मोर मुक्त होता है। जैसे बंध मोर मोक्ष के योग्य स्निगा या

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