Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 03
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 208
________________ (२०२) होकर नष्ट होने वाली है जो वचन के गोचर नहीं है । व्यंजनपर्याय जो देर तक रहे और स्थूल होती है, अल्पज्ञानी को भी दृष्टिगोचर होती हैं वह व्यंजनपर्याय है । फिर व्यंजनपर्याय एक समय की ही होती है यह बात झूठी साबित हुई ? उत्तर - अरे भाई, व्यंजनपर्याय भी एक ही समय की होती है । परन्तु समय समय की होकर, वैसी की वैसी होने से, देर तक रहे, स्थूल होती है अल्पज्ञानी को भी दृष्टिगोचर होती है यह कहा जाता है, वास्तव में ऐसा ही नहीं । प्रश्न ( ४१५ ) - शास्त्रों में दर्शमोहनीय कर्म की सत्तर कोडाकोडी स्थिति बतलाई, वहाँ एक एक समय की पर्याय कहां रही ? उत्तर - शास्त्रों में जो दर्शन मोहनीय की सत्तर कोडा कोडी की स्थिति बताई है उसका मतलब यह है कि वह स्कंध कब तक रहेगा अर्थात् एक एक समय बदलकर सत्तर कोडाकोडी तक रहेगा, यह तात्पर्य है । प्रश्न (४१६ ) - एक एक समय का एकेक भव रहा, ऐसा शास्त्रों में कहां बताया है ? उत्तर- भाव पाहुड गाथा ३२ की टीका में लिखा हैं कि जो आयु का उदय समय समय करि घट है सो समय समय मरण है ये प्रविचिका मरण है" $............ 1 इसमें बताया है कि जीव समय समय में मरता है, क्योंकि पर्याय एक एक समय की होती है । वास्तव में एक एक समय का एक एक भव है, क्योंकि सूक्ष्मऋजुसूत्र नय की अपेक्षा गति कितनी देर तक चलेगी यह बात . भावपाहुड़ में बताई है। इसलिए "जैसी मति, वैसी गति"

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