Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 03
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 207
________________ (२०१) लोक में सोने और चांदी को गलाकर एक कर देने से एक पिण्ड का व्यवहार होता है; उसी प्रकार आत्मा और शरीर की परस्पर एक क्षेत्र में रहने की अवस्था होने से एक पने का व्यवहार होता है । यो व्यवहार मात्र से ही आत्मा और शरीर का एकपना है परन्तु निश्चय से देखा जावे तो जसे पीलापन आदि, और सफेदी आदि जिसका स्वभाव है ऐसे सोने, और चांदी में अत्यन्त भिन्नता होने से उनमें एक पदार्थपने की प्रसिद्धि है। इसलिए अनेकत्व ही है" । व्यवहारनय जीव और शरीर को एक कहता है किन्तु निश्चयनय से एक पदार्थपना नहीं है। प्रश्न (४११)-क्या प्रत्येक स्कंध में प्रत्येक परमाणु अलग अलग है ? उत्तर-स्कंध में जितने परमाणु है उसमें प्रत्येक परमाणु पूर्ण रुप से अपना ही कार्य करता है दूसरे का बिल्कुल नही करता, ऐसा ही केवली के ज्ञान में पाया है और ऐसा ही ज्ञानी जानते है। प्रश्न (४१२)-जिससे सम्यग्दर्शन हो और फिर क्रम मोक्ष हो ऐसे पाठ बोलो में से पाठवां बोल क्या है ? उत्तर-अर्थपर्याय और व्यंजनपर्याय के विषय में मिथ्या मान्यता क्या है, यह आठवां बोल है। प्रश्न (४१३)-पर्याय कितने समय की है ? • उत्तर-व्यंजन पर्याय हो, या,अर्थपर्याय हो, चाहे वह स्वभाव रुप हो. या विभाव रुप हो सब एक एक समय की ही होती है ज्यादा समय की कोई भी पर्याय नहीं होती है। प्रश्न (४१४)-श्री पंचास्तिकाय जयसेनाचार्य गा. १६ में लिखा है कि 'अर्थपर्याय अत्यन्त सूक्ष्म, क्षण क्षण में

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