Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 03
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 181
________________ ( १७५ ) धर्म अधर्म तो निमित्त मात्र है ऐसा जानकर अपनी ओर दृष्टि दे तो क्रियावती शक्ति को जाना। प्रश्न (३००,वभाविक शक्ति किसे कहते है ? उत्तर -यह एक विशेष भाव वाला गुण है जिस गुण के कारण पर द्रव्य के सम्बंध पूर्वक स्वयं अपनी योग्यता से अशुद्ध पर्याय होती है। प्रश्न (३०१)-वैभाविक गुण कितने द्रव्यों में है ? उत्तर - जीव और पुद्गल दो द्रव्यों में ही है। बाकी चार में नहीं है। प्रश्न , ३०२)-वैभाविक शक्ति गुण को शुद्ध पर्याय कब प्रगट होती है। उत्तर सिद्धदशा में इस गुण की शुद्ध स्वभाविक दशा प्रगट होती है। प्रश्न १३०३)-प्रत्येक द्रव्य की पर्याय कितनी बड़ी होती है ? उत्तर -जितना बड़ा जो द्रव्य है उतनी ही बड़ी उस द्रव्य की पर्याय होती है क्यों क प्रत्येक पर्याय द्रव्य के सम्पूर्ण भाग में एक समय रुप होती है। प्रश्न (३०४, प्रत्येक पर्याय की स्थिति कितनी देर की होती है? उत्तर- कोई भी पर्याय हो सबकी स्थिति एक एक समय मात्र ही होती है। प्रश्न (३०५)-प्रत्येक गुण में कितनी पर्यायें होती है ? उत्तर-तीन काल के जितने समय हैं, उतनी उतनी ही पर्याय प्रत्येक गुण में हैं। प्रश्न (३०६-एक गुण में, एक पर्याय का उत्पाद, एक पर्याय

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