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करता, संदेह करता है वह सर्वज्ञ के प्रागम के प्रतिकूल है - प्रगटरूप में मिथ्यादृष्टि है ।
प्रश्न (१५) - विश्व को जानने से छठा क्या लाभ है ?
उत्तर - क्रमबद्ध पर्याय की सिद्धि ।
प्रश्न ( १७ ) - विश्व को जानने से क्रमबद्ध पर्याय की सिद्धि कैसे हो गई ।
उत्तर - केवली के ज्ञान में श्राया है वैसा ही छहों द्रव्यों का स्वतन्त्र परिणमन हो रहा है, होता रहेगा, और होता रहा है क्योंकि " जो जो देखी वीतराग ने, सो सो होंसी वीरा रे" ;
प्रश्न ( ८ ) - क्रमबद्ध पर्याय की सिद्धि से क्या लाभ रहा ? उत्तर - केवली भगवान के समान ज्ञाताद्रष्टा बुद्धि प्रगट हो गई ।
प्रश्न ( C ) - प्रत्येक द्रव्य अपना अपना स्वतंत्र परिणमन करता है ऐसा कहीं प्राचार्यकल्प टोडर मल जी ने मोक्षमार्ग प्रकाशक में कहा है ?
उत्तर - मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ ५२ में लिखा है कि " जैसा पदार्थों का स्वरूप है वैसा ही श्रद्धान हो जावे तो सर्व ही दुःख मिट जायें"
प्रश्न (१००) - पदार्थों का स्वरूप कैसा है ?