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हुए बहुत कष्ट करते है तो करो तथापि ऐसा करते हुए कर्मक्षय तो नहीं होता" तथा - १४३ में कहा है कि "शुभ शुभ रूप है जितनी क्रिया उनका ममत्व छोड़कर एक शुद्ध स्वरुप अनुभव कारण है।
प्रश्न (८५) - सम्यग्दर्शन रहित शुभरागरुप व्यवहार किया है। उसको पण्डित बुधजन जी ने क्या कहा है ?
उत्तर- "सम्यक् सहज स्वभाव प्रापका अनुभव करना, या बिन जप-तप व्यर्थ कष्ट के माँहीं पड़ना । कोटि बात की बात अरे । बुधजन उर धरना, मन वच तन शुचि होय ग्रहो जिन वृक्ष का शरना ||"
अर्थात् सम्यक्दर्शनादि रहित व्यवहार श्रद्धा जीव ने अनन्तबार की है वह सब मिथ्या है। मिथ्यात्वपूर्वक जो जीव भाव करता है वे सब दुःखदायक ही हैं । करोड़ों बात का यही सार है कि आत्मा के सहज स्वभाव का अनुभव करना; उसके बिना सब (दया, दान, पूजा अणुव्रत महाव्रतादि) व्यर्थ हैं। जैसे एक के बिना बिन्दियों की कीमत नहीं होती है उसी प्रकार सम्यक्दर्शन के बिना व्रतादि की शुभ क्रियानों पर उपचार भी सम्भव नहीं है ।
प्रश्न ( ८६ ) -- अपना अनुभव हुये बिना महाव्रतादि कार्यकारी नहीं है ऐसा कहीं 'छढाला' जो कि छोटे बच्चों के लिए है कहीं लिखा है ?
उत्तर- सब जगह लिखा है:
(१) पहली ढाल में “जो विमानवासी हूँ थाय, सम्यग् -