Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 03
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 148
________________ (१४२) समस्त प्रकार से लाभ मानना, यह पर्याय की दूसरी परिभाषा है प्रश्न ( १०७ ) - पर्यय' किसे कहते हैं ? उत्तर - परि= समस्त प्रकार से । ऐय = परिणमन, अर्थात् समस्त प्रकार से अपने में परिणमन, इसे 'पर्याय' कहते है । प्रश्न ( १०८ ) -- परिणमन किसे कहते हैं ? उत्तर—परि=समस्त प्रकार से । णमन = भुक जाना अर्थात् समस्त प्रकार से अपने में झुक जाना, इसे परिणमन कहते है । प्रश्न ! १०६ ) - 'अवस्था' किसे कहते हैं ? उत्तर - प्रव= निश्चय । स्था = स्थिति करना, अर्थात् अपने में ही निश्चय से स्थिति करना, ठहरना, उसे 'अवस्था' कहते हैं । प्रश्न ( ११० ) -- प्रखण्ड द्रव्य में अंश कल्पना करने को क्या कहते हैं ? उत्तर - पर्याय कहते हैं । प्रश्न (१११) --पर्याय के पर्यायवाची शब्द क्या क्या हैं ? उत्तर - प्रश कहो, भाग कहो, प्रकार कहो, भेद कहो, छेद कहो, उत्पाद व्यय कहो, क्रमवर्ती कहो, व्यतिरेकी कहो, नित्य कहो, विशेष कहो, अनवस्थित कहो प्रादि पर्याय के नामान्तर हैं । प्रश्न ( ११२ ) -- व्यतिरेकी' किसे कहते हैं ? उत्तर - भिन्न भिन्न को व्यतिरेकी कहते हैं । प्रश्न ( ११३ ) - व्यतिरेक कितने प्रकार का है ?

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