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प्रात्मा हूँ जब तक ऐसा अनुभव ना हो तब तक तो व्रत
दानादि करना चाहिए ना ? उत्तर-जैसे किसी ने अमेरिका जाना है और किसी
कारण से अमेरिका न जाना बने तो, क्या अमेरिका के बदले रूस जाया जावे ? आप कहेंगे नहीं, बल्कि अमेरिका के जाने का प्रयत्न करना; उसी प्रकार जब तक अपने ज्ञायक स्वभाव का अनुभव न हो, तो क्या व्रतादि में लग जाना चाहिए? आप कहेगे नहीं, बल्कि आत्मा के अनन्त गुणों के अभेद पिण्ड के अनुभव का अभ्यास करना । अात्मा अनुभव के अभ्यास को छोड़कर व्रतादि में लग जाना यह तो अमेरिका के बदले रूस जाने के समान है। इसलिए पात्र जीवो को प्रथम अनन्त गुणो के अभेद पिण्ड
अपने भगवान का अनुभव करना ही कार्यकारी है। प्रश्न (८०)--मैं अनन्त गुणों का अभेद पिण्ड हूँ ऐसा अनुभव
हुवे बिना देव गुरु, शास्त्र की भक्ति कुछ कार्यकारी है
या नहीं ? उत्तर-संसार भ्रमण के लिए कार्यकारी है मोक्ष के लिए
कार्यकारी नही है।
प्रश्न (८१)-मैं अनन्त गुणों का प्रभेद ज्ञायक भगवान आत्मा
हूँ ऐसा अनुभव हुए बिना बारह अणुव्रतादि कार्यकारी
या है; नहीं.? उत्तर-चारो गतियों में घूमकर निगोद में जाने के लिए कार्य
कारी हैं, श्रावकपने के लिए कार्यकारी नहीं हैं। प्रश्न (८२) मैं गुणों का अभेद पिण्ड भगवान प्रात्मा हूँ ऐसा