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प्रश्न (६०)--जिनेन्द्र भगवान के कहे हुए समिति, गप्ति के
शुभ भावों से तो चारित्र की प्राप्ति होती है ना ? उत्तर-बिल्कुल नहीं, क्योंकि भगवान जिनेन्द्र ने समिति ___ गुप्ति के भावों को तो पुण्यबंध का कारण कहा है
चारित्र की प्राप्ति नही कही है। प्रश्न (६१)-जो जीव शुभभावो से चारित्र मानता है उसे
भगवान ने क्या कहा है ? उत्तर- श्री कुन्दकुन्द भगवान ने गा० २७३ में कहा है कि
"जिनवर प्ररुपित व्रत, समिति, गुप्ति अरु तप शील को। करता हुआ भी अभव्य जीव, अज्ञानी मिथ्यादृष्टि है
॥२७३॥ तथा गा० १४५ में लिखा है कि"है कर्म अशुभ कुशील अरु जानो सुशील शुभ कर्म को। किस रीत होय सुशील, जो संसार में दाखिल करे ॥१४५।। तथा १५४ में लिखा है कि "परमार्थ बाहिर जीवगण, जाने न हेतू मोक्ष का। अज्ञान से वे पुण्य इच्छे, हेतु जो संसार का ।।१५४॥
जैसे लहसुन खाने से कस्तूरी की डकार नहीं आती; उसीप्रकार शुभभावों से कभी धर्म की प्राप्ति नहीं होती है। एकमात्र अपने द्रव्य स्वभाव के आश्रय से ही
चारित्र की प्राप्ति होती है। प्रश्न (६२)-मिथ्यात्व के प्रभाव के लिए क्या करें तो मिथ्यात्व
का अभाव हो ?