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(५७) उत्तर-मैं अनन्त गुणों का अभेद भूतार्थ स्वभावी भगवान हूँ ऐसा जानकर परिपूर्ण लीनता करे तो पंचमगति की प्राप्ति हो।
प्रश्न (३६)-द्रव्यलिंगी मुनि को धर्म की प्राप्ति क्यों नहीं
उत्तर-द्रव्यलिंगी मुनि ने अपने को अनन्त गुणों का अभेद
भूतार्थ स्वभावी भगवान न मानकर, पर पदार्थो का पिण्ड माना, इसलिए धर्म की प्राप्ति नहीं हुई। प्रश्न (४०) अज्ञानी ने अनादि से एक एक समय करके अपने
को किस किस का पिण्ड माना, जिससे उसे धर्म की प्राप्ति नहीं हुई : उत्तर-(१) अत्यन्त भिन्न पदार्थों का पिण्ड माना।
(२) आँख, नाक, औदारिक शरीर का पिण्ड माना। (३) आठ कर्मों का पिण्ड माना। (४) भाषा और मन का पिण्ड माना। १५) विकारी भावो का पिण्ड माना (६) अपूर्ण पूर्ण शुद्ध पर्याय का पिण्ड माना, इसलिए
धर्म की प्राप्ति नहीं हुई। प्रश्न (४१)--प्रज्ञानी किसका अभेद पिण्ड माने तो मिथ्यात्व
का अभाव होकर सम्यक्त्त्व की प्राप्ति हो ? उत्तर - अनन्त गुणों का अभेद पिण्ड भूतार्थ भगवान माने तो
मिथ्यात्व का अभाव होकर सम्यक्त्व की प्राप्ति हो। प्रश्न (४२)-भूतकाल में जो मोक्ष गये हैं वह किस उपाय से? उत्तर-मैं अनन्त गुणों का अभेद पिण्ड भूतार्थ स्वभावी