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( २३ ) प्रश्न (४४)--अस्ति = अर्थात् होना से क्या तात्पर्य है ? उत्तर-पुद्गलास्तिकाय में अस्तिपना पुद्गल का पुद्गल से है,
शरीर का अस्तिपना शरीर से है जीव से नहीं-यह अस्ति से तात्पर्य है। परन्तु अज्ञानी 'मैं हूँ तो शरीर है, मैं है तो शरीर का कार्य होता है' ऐमी मान्यता वाले जीव ने पुद्गल का अस्तिपना नहीं माना । पुद्गल का अस्ति (होनापना) पुद्गल से ही है मेरे से नहीं तभी पुद्गल का अस्ति
स्वभाव माना । प्रश्त (४५)--पुद्गल के अस्ति स्वभाव को जानने से क्या
लाभ रहा ? उत्तर--सात प्रकार के भयों का अभाव होकर ज्ञाता-दृष्टापना
प्रगट होना पुद्गल के अस्ति स्वभाव को जानने का
लाभ है। प्रश्न (४६)--काय अर्थात् समूह से क्या तात्पर्य है ? उत्तर-लड्डु बना, हलवा बना, दाल बनी, खीर बनी, वह
पुद्गलास्तिकाय के 'काय' के कारण बनी जीव से नहीं। प्रश्न (४७)--काय अर्थात् समूह को जानने से क्या लाभ रहा? उत्तर-बुन्दी अलग अलग थी तो मैंने लड्डु बना दिया, दस
दवायें मिलाकर मैंने चूर्ण बनाया, घी चीनी सूजी से मैंने हलवा बना दिया ऐसी खोटी बुद्धि का अभाव हो गया क्योंकि यह सब कार्य 'काय' का है पात्र जीव को