________________
( २७ ) (४) सर्व द्रव्यो की प्रत्येक पर्याय मे छह कारक एक साथ वर्तते हैं । इसलिए आत्मा और पुदगल शुद्ध दशा मे या अशुद्ध दशा मे स्वय छहो कारक स्प परिणमन करते है और दूसरे कारको की (निमित्तकारणो की) अपेक्षा नहीं रखते। [पचास्तिकाय गा० ६२ से]
(५) निश्चय से पर के साथ आत्मा का कारकपने का सबब नही है कि जिससे सुद्धात्म स्वभाव की प्राप्ति के लिए सामग्री (वाह्य साधन) खोजने की व्यग्रता ने जीव (व्यर्थ ही) परतन्त्र होते है।
[प्रवचनसार गा० १६ की टीका से] (६) देखो, समयसार गा० १०३, ३७२, ४०६ ।। (७) समयसार कलग ५१, ५२, ५३, ५४ तथा कलश २०० ।।
प्रश्न ४२–प्रत्येक द्रव्य अपने ही परिणाम का कर्ता-भोक्ता हैं दूसरे का नहीं है । परन्तु जो लोग इस बात को नहीं मानते और कहते हैं कि हम शरीर-स्त्री-पुत्रादि के कर्ता हैं उसका क्या फल होगा?
उत्तर-(१) जैसे-सीता को रावण चुराकर ले गया और रावण ने बहुत प्रयत्न किया कि जैसे-सीता राम को प्यार करती है वैसा मुझे प्यार करे। उसका फल उसे तीसरे नरक जाना पड़ा, उसी प्रकार जो ससार के पदार्थों को अपने अनुमार परिणमाना चाहता है उसका फल उसे नरक मे जाना पडेगा। (२) एक बार बम्बई मे हगामा हो गया। लोगो ने पुकारा "बम्बई हमारा, बम्बई हमारा" तो सरकार तग आ गई । तव वडे जनरल को छोटे जनरल ने टेलीफोन किया, कि इसका एक मात्र उपाय यह है सुबह समाचार पत्र मे दे दो, जो अपने घर से बाहर निकलेगा, उसे गोली मार दी जावेगी। ऐसा ही सुबह समाचार पत्र मे आ गया । जब कोई अपने घर से बाहर निकला उसे तरन्त गोली मार दी गई, जो नही निकला वह ठीक रहा, उसी प्रकार जो अपने द्रव्य-गुण-पर्याय से बाहर निकलता है उसे चारो गति रूप गोली मार दी जाती है। इसलिए जो अपनी मर्यादा से बाहर निकलता है वह दुखी होता है। जो अपनी मर्यादा मे रहता है वह रम्यग्दर्शनादि