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रणो से पृथक् करका त्रिकाली पर्यायों से
( ८७ ) करने से क्या लाभ था ? कह देते कि कार्य उस समय पर्याय की योग्यताक्षणिक उपादानकारण से ही होता है।
उत्तर-(१) निमित्त कारणो से पृथक करने की अपेक्षा से चाक, कीली, डॅडा, हाथ आदि आहारवर्गणा के स्कघ त्रिकाली उपादान कारण को बताना आवश्यक था। (२) भूत-भविष्यत् की पर्यायो से पृथक करने की अपेक्षा से और अभाव रूप कारण का ज्ञान कराने के लिए नौ नम्बर अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय क्षणिक उपादानकारण को वताना आवश्यक था। (३) अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय नौ नम्बर क्षणिक उपादान कारण से पृथक् करने की अपेक्षा से और कार्य के सच्चा कारण का ज्ञान कराने के लिए उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादान कारण को बताना आवश्यक था। इसलिए तीनो कारणो का सच्चा ज्ञान कराने के लिये शास्त्रो मे इतना लम्बा-लम्बा करके समझाया है।
प्रश्न ७२-चाक, कोली, डडा, हाथ आदि कार्य-उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादानकारण से हुआ है। इसको मानने से क्या लाभ हुआ?
उत्तर-जैसे-चाक, कीली, डडा हाथ आदि कार्य-उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादान कारण से हुआ है। वैसे ही विश्व मे जितने भी कार्य हैं वे सब उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादान कारण से हो चुके हैं हो रहे है और भविष्य मे होते रहेगे। ऐसा केवली के समान सच्चा ज्ञान हो जाता है।
प्रश्न ७३--विश्व मे जितने भी कार्य हैं। वे सब उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादानकारण से ही हो चुके हैं, हो रहे हैं और भविष्य में होते रहेगे। ऐसा केवली के समान सच्चा ज्ञान होते ही क्या-क्या अपूर्व कार्य देखने में आता है ?
उत्तर-(१) अनादिकाल की पर मे करूं कहें की खोटी मान्यता का अभाव होना (२) दृष्टि अपने ज्ञायक स्वभाव पर आना। (~