Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 02
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 234
________________ ( 228 ) अवस्था की रचयिता ईश्वर है। स्व का स्वामी है पर का स्वामी मानना मिथ्यात्व है। सयोग के बिना अवस्था नही होती-ऐसा नही है, परन्तु वस्तु परिणमित हुए बिना अवस्था नही होती-ऐसा सिद्धात है / पर्याय के कर्तृत्व का अधिकार वस्तु का अपना है उसमे पर का अधिकार नही है / इच्छारूपी कार्य हुआ उसका कर्ता आत्मद्रव्य है / उस समय उसका ज्ञान हुआ, उस ज्ञान का कर्ता आत्मद्रव्य है / पूर्व पर्याय मे तीन राग था इसलिये वर्तमान मे राग हुआ, इस प्रकार पूर्व पर्याय मे इस पर्याय का कर्तापना नही है। वर्तमान मे आत्मा वैसे भावरूप परिणामित होकर स्वय कर्ता हुआ है। इसी प्रकार ज्ञानपरिणाम, श्रद्धापरिणाम, आनन्दपरिणाम उन सब का कर्ता आत्मा है पर कर्ता नही। पूर्व के परिणाम भी कर्ता नही तथा वर्तमान मे उसके साथ वर्तते हुए अन्य परिणाम भी कर्ता नही हैआत्मद्रव्य स्वय कर्ता है। शास्त्र मे पूर्व पर्याय को कभी-कभी उपादान कहते हैं, वह तो पूर्व–पश्चात् को सधि बतलाने के लिए कहा है, परन्तु पर्याय का कर्ता तो उस समय वर्तता हुआ द्रव्य है, वही परिणामी होकर कार्यरूप परिणमित हुआ है। जिस समय सम्यग्दर्शन पर्याय हुई उस समय उसका कर्ता आत्मा ही है / पूर्व की इच्छा, वीतराग की वाणी या शास्त्र-वे कोई वास्तव में इस सम्यग्दर्शन के कर्ता नही हैं। उसी प्रकार ज्ञानकार्य का कर्ता भी आत्मा ही है / इच्छा का ज्ञान हुआ, वहा वह ज्ञान कही इच्छा का कार्य नही है और वह ज्ञान का कार्य नही है। दोनो परिणाम एक ही वस्तु के होने पर भी उनको कर्ता-कर्मपना नही है, कर्ता तो परिणामी वस्तु है। पुदगल मे खट्टी-खारी अवस्था थी और ज्ञान ने तदनुसार जाना, वहाँ खट्टे-खारे तो पुद्गल के परिणाम हैं और पुद्गल उनका कर्ता है; तत्सम्बन्धी जो ज्ञान हुआ उसका कर्ता आत्मा है; उस ज्ञान का

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