Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 02
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 250
________________ ( 244 ) - प्रश्न १४-कोई चतुर वाई को उपादान कारण और रोटी को उपादेय / ऐसा ही माने तो क्या दोष आता है ? प्रश्न १५-निमित्त कारणो से हो कार्य की उत्पत्ति माने उसे जिनवाणी मे फिन-किन नामो से सम्बोधन किया है ? प्रश्न १६-आटा त्रिकाली उपादान कारण और रोटी उपादेय। ऐसा मानने से क्या लाभ हुआ? प्रश्न १७-कोई चतुर प्रश्न करता है कि तवा, चकला, बेलन, बाई आदि निमित्त कारण हो तो रोटी बने आप कहते हो निमित्तकारणो से कार्य का सम्बन्ध नहीं है। तो आटा उपादानकारण और रोटी उपादेय / यह आपकी बात झूठी साबित होती है ? ' प्रश्न १८-आटे भी रोटी का सच्चा कारण नहीं है तो रोटी का सच्चा उपादान कारण कौन है ? प्रश्न १६-आटा मे अनादि काल से पर्यायो का प्रवाह क्यो चला आ रहा है ? प्रश्न २०-अनन्तर पूर्व क्षणवर्ती पर्याय लोई क्षणिक उपादान कारण और रोटी उपादेय / इसको मानने से क्या लाभ हुआ ? प्रश्न २१-कोई चतुर फिर प्रश्न करता है कि अभाव मे से भाव की उत्पत्ति नहीं होती हैं और पर्याय में से पर्याय नहीं आती है / ऐसा जिनवाणी में बताया है। तो फिर यह मानना अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय लोई क्षणिक उपादान कारण और रोटी उपादेय / यह आपकी बात झूठी साबित होती है ? प्रश्न २२-अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय लोई रोटी का सच्चा कारण नहीं है। तो कैसा कारण है और कैसा कारण नहीं है ? प्रश्न २३-अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय लोई भी रोटो का सच्चा कारण नहीं है। तो वास्तव में रोटी का सच्चा कारण कौन है ? प्रश्न २४-वास्तव में उस समय पर्याय की योग्यता रोटी क्षणिक

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