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( १०४ ) प्रश्न १५०-वास्तव में उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादानकारण कारण ही ज्ञान का सच्चा उपादानकारण है। ऐसा मानने से क्या लाभ हुआ?
उत्तर-(१) अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय नौ नम्बर क्षणिक उपादान कारण की तरफ ज्ञान के लिए देखना नही रहा । (२) अब एकमात्र ज्ञान के लिए उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादान कारण की तरफ ही देखना रहा । यह लाभ हुआ।
प्रश्न १५१--(१) आत्मा का ज्ञानगुण त्रिकाली उपादानकारण और ज्ञान उपादेय। (२) अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय नौ नम्बर क्षणिक उपादानकारण और ज्ञान उपादेय। (३) उस समय पर्याय की योग्यता ज्ञान क्षणिक उपादानकारण और ज्ञान उपादेय । ऐसा शास्त्रों मे वताया। परन्तु इतना लम्बा-लम्बा झगडा करने से क्या लाभ था? कह देते कि कार्य उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादानकारण से ही होता है ?
उत्तर-(१) निमित्त कारणों से पृथक करने की अपेक्षा से त्रिकाली उपादान कारण ज्ञान गुण को बताना आवश्यक था। (२) भूत-भविष्यत् पर्यायो से पृथक करने की अपेक्षा से और अभाव रूप कारण का ज्ञान कराने के लिए अनन्तरपूर्वक्षणवर्ती पर्याय क्षणिक उपादान कारण नौ नम्बर को बताना आवश्यक था। (३) अनन्तरपूर्व क्षणवती पर्याय क्षणिक उपादानकारण से पृथक करने की अपेक्षा से कार्य के सच्चे कारण का ज्ञान कराने के लिए उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादान कारण ज्ञान को बताना आवश्यक था। इसलिए तीनो कारणो का सच्चा ज्ञान कराने के लिए शास्त्रो मे इतना लम्बालम्बा करके समझाया है।
प्रश्न १५२-ज्ञान उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपा. दानकारण से हुआ है। इसको मानने से क्या लाभ हुआ? ,
उत्तर-जैसे-ज्ञान-उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादान