________________ ( 158 ) कलियॉ" अर्थात् अनादि का भव बन्धन समाप्त होकर ऋम से मोक्ष की प्राप्ति इसका फल बताया है। प्रश्न ७५---'मै सुबह उठकर यहाँ आया' अज्ञानी इसमे कैसा निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध मानता है ? उत्तर--अज्ञानी की मान्यता मे मै आत्मा था तो शरीर उठकर आया" या शरीर था तो मैं आत्मा आया।" इस प्रकार अनन्त पर द्रव्यो मे अपनेपने की-ममकारपने की, पर को अपने रूप करने की अपने को पररूप करने की खोटी वृद्धि पाई जाती है जिसका फल निगोद है अर्थात उल्टा निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध मानने का फल निगोद है। प्रश्न ७६-अज्ञानी का अज्ञान दूर करने का उपाय भगवान ने क्या बताया है ? उत्तर-जिस प्रकार कोई मोहित होकर मुद को जीवित माने या जिलाना चाहे तो आप ही दुखी होता है तथा उसे मुर्दा मानना और यह जिलाने से जियेगा नहीं। ऐसा मानना सो ही दुख दूर होने का है उपाय / उसी प्रकार मिथ्यादृष्टि पदार्थों को अन्यथा माने अन्यथा परिणमित कराना चाहे तो आप ही दुखी होता है तथा उन्हे यथार्थ मानना और यह परिणमित कराने से अन्यथा परिणमित नहीं होगे। ऐसा मानना सो ही उस दुख के दूर होने का उपाय है। भ्रम जनित दुख का उपाय भ्रम दूर करना ही है। सो भ्रम दूर होने से सम्यक् श्रद्धान होता है / यही सत्य उपाय भगवान ने बताया है। प्रश्न ७७-क्या अज्ञानी सुबह से शाम तक पुद्गल के दिखने वाले कार्यों का निमित्तकर्ता भी नहीं है ? उत्तर-वास्तव मे सुबह से शाम तक जितने रूपी पदार्थों के कार्य होते हैं उनका कर्ता पुद्गल ही हैं। अज्ञानी जीव मे भी पुद्गल के कार्यों का निमित्तकर्ता नही है। परन्तु अज्ञानी अज्ञानवश यह मानता है कि मैंने रोटी बनाई, मैंने व्यापार किया, मैं हसा, मैं सोया आदि