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से जीव का कहा है (२) व्यवहार से जीव का कहा है। (३) पर्यायार्थिकनय से जीव का कहा है । ( ४ ) अशुद्ध पारिणामिक भाव कहा है। (५) औदयिकभाव कहा है; वहाँ ऐसा कहने का तात्पर्य क्या-क्या है ?
उत्तर - ( १ ) विकारी भाव जीव की पर्याय मे होते है इस अपेक्षा निश्चय कहा और अशुद्ध है इसलिए अशुद्ध कहा । अशुद्ध निश्चयनय से विकारीभाव जीव के कहे, ताकि जीव शुद्ध निश्चयनय का आश्रय लेकर विकारी भावो का अभाव करे (२) विकारी भाव पराश्रित होने से व्यवहार कहा, निश्चय स्वाश्रित होता है इसलिए निश्चय का आश्रय लेकर विकारी भाव जो पराश्रित है उनका अभाव करे (३) विकारी भाव पर्याय मे है द्रव्य-गुण मे नही है । द्रव्य-गुण अभेद का आश्रय लेकर पर्याय मे से विकार का अभाव करे (४) धवल मे विकारी भावो को अशुद्ध पारिणामिकभाव कहा है ताकि पात्रजीव शुद्ध पारिणामिक भाव का आश्रय लेकर विकारी भावो का अभाव करे (५) विकारी भावो को औदयिक भाव कहा है ताकि पात्र जीव पारिणामिक भाव का आश्रय लेकर औदयिक भाव का अभाव करे । यह न्यारी-न्यारी अपेक्षा कहने का तात्पर्य है ।
प्रश्न २७६- 'आत्मा-प्रज्ञा द्वारा भेदज्ञान करता है'। इस वाक्य पर से कितने कारक सिद्ध होते हैं ?
उत्तर -- तीन- आत्मा-कर्ता, प्रज्ञा द्वारा-करण, भेद ज्ञान करता है-कर्म |
प्रश्न २८० -- 'आत्मा ने ज्ञान दिया। इसमें कितने कारक सिद्ध होते है ?
उत्तर- दो । आत्मा - कर्ता, ज्ञान दिया -कर्म |
प्रश्न २८१ - आत्मा ने, ज्ञान द्वारा, ज्ञान दिया । इसमे कितने कारक सिद्ध होते हैं ?
उत्तर--आत्मा ने-कर्ता, ज्ञान द्वार
, ज्ञान दिया कर्म ।