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( ७४ ) प्रश्न १८-कुम्हार चाक, कोली, रंडा, हाथ आदि उपादानकारम और घड़ा उपादेय । क्या यह उपादान-उपादेय का ज्ञान ठीक है?
उत्तर-बिल्कुल ठीक नहीं है, क्योकि यहां पर मिट्टी त्रिकाली उपादानकारण और घड़ा उपादेय है।
प्रश्न १६-यदि कोई चतुर कुम्हार, चाक, कोली, रडा, हाय आदि उपादान कारण और घड़ा उपादेय-ऐसा ही माने तो क्या दोष आता है?
उसर-कुम्हार, चाक, कीली, डडा हाथ आदि नष्ट होकर मिट्टी बन जावे तो ऐसा माना जा सकता है कि कुम्हार, चाक, कीली, डडा हाथ आदि उपादानकारण और घड़ा उपादेय । लेकिन ऐसा नहीं हो सकता, क्योकि उपादन-उपादेय तत्स्वरुप मे ही (अभिन्न सत्ता वाले पदार्थों मे ही) होता है, जिनकी सत्ता-सत्त्व भिन्न-भिन्न हैं ऐसे दो पदार्थों मे उपादान-उपादेय नहा होता है।
प्रश्न २०-~-जो कुम्हार, चाक, कीलो, डा, हाथ आदि निमित्त कारणो को ही घड़े का (कार्य का) सच्चा कारण मानते हैं। उन्हें जिनवाणी मे किन-किन नामो से सम्बोधन किया है।
उत्तर-(१) जो निमित्त कारणो से ही कार्य की उत्पत्ति मानते है, उन्हे समयसारकलश ५५ मे कहा है कि "उनका सुलटना दुर्निवार है और यह उनका अज्ञान मोह अधकार है।" (२) जो निमित्तकारणो से ही कार्य की उत्पत्ति मानते है, उन्हे प्रवचनसार गाथा ५५ मे कहा है कि "वह पद-पद पर धोखा खाता है।" (३) जो निमित्तकारणो से ही कार्य की उत्पत्ति मानते है, उन्हे पुरुषार्थ सिद्धयुपाय गाथा ६ मे कहा है कि "तस्य देशना नास्ति अर्थात् वह भगवान की वाणी सुनने लायक नही है।" (४) जो निमित्तकारणो से ही कार्य की उत्पत्ति मानते हैं। उन्हे आत्मावलोकन मे कहा है कि "यह उनका हरामजादीपना है।"