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( ३३ ) निमित्त से दृष्टि उठाकर मात्र उस समय पर्याय की योग्यता ही कार्य का सच्चा कर्ता है, यह पता चले, तो कल्याण हो।
प्रश्न ७४ - कर्म कारक को समझने के लिए क्या-क्या याद रखना
चाहिए' (१) वास्तव में पानी का ही है, अन्यत रहती नहीं, यह
उतर-(१) वास्तव मे परिणाम ही निश्चय से कर्म है, (२) परिणाम अपने आश्रयभूत परिणामी का ही है, अन्य का नहीं (३) कर्म कर्ता विना होता नहीं (४) वस्तु की एकरूप स्थिति रहती नही, यह यह चार वोल कर्मकारक समझने के लिए पर्याप्त है [इसके लिए इसी शास्त्र का नोवा अधिकार देखियेगा]
[समयसार कलश २११] प्रश्न ७५ कर्मकारक को समझने से क्या लाभ है ?
उत्तर-जो-जो कार्य होता है वह सब अपनी-अपनी पर्याय की योग्यता से ही होता है। जब कार्य अपनी-अपनी पर्याय की योग्यता से होता है तो मै उस कार्य को करूं या कराऊँ, ऐसी बुद्धि का अभाव होकर दृष्टि अपने त्रिकाली भगवान पर आना औरशान्ति का अनुभव होना यही कर्मकारक को जानने का लाभ है।
प्रश्न ७६-कार्य से "उस समय पर्याय की योग्यता ही कारण है" यह शास्त्र मे कहीं आया है ?
उत्तर-वास्तव मे कोई भी कार्य होने मे या विगडने मे उसकी योग्यता ही साधक होती है।
[इष्टोपदेश गाथा ३५ की टीका बम्बई से प्रकागित] प्रश्न ७७~-(१)दूध गिर गया (२) बच्चा भागता-भागता गिर गया (३) मर गया (४) शरीर मे बीमारी हुई (५) रोटी जल गई (६) माल चोरी हो गया (७) चलते-चलते गिर गया (८) भाषा बोली (९) हाथ ऊँचा उठाया (१०) पुस्तक उठाई (११) अक्षर लिखे (१२) मकान बना, इक सव मे कर्म कारक को कवनाना और का नहीं माना?