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कार्माणवर्गणा अपादान हुई । (६) ज्ञानावरणीय कर्म का उदय किसके आधार से हुआ ? कार्माणवर्गणा के आधार से हुआ । अत. कार्माणवर्गणा अधिकरण हुई ।
प्रश्न २४६ - आपने जैसे प्रश्न २४५ में ज्ञानावरणीय कर्म के उदय पर छह कारक लगाये हैं क्या उसी प्रकार बाकी २० भेवों पर भी लगेंगे ?
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उत्तर - हाँ, ज्ञानावरणीय कर्म के उदय के समान छहो कारक २० भेदो पर भी लगेंगे ।
प्रश्न २४७–२१×६= १२६ भेवो से क्या सिद्धि हुई ? उत्तर - ( १ ) प्रत्येक कार्य की स्वतन्त्रता की सिद्धि हुई ( २ ) जीव के कारण द्रव्यकर्म मे उदय, क्षय आदि अवस्था होती हैं और द्रव्यकर्म के कारण जीव मे औपशमिक, क्षायिक, क्षयोपशम आदि भाव होते है । ऐसी खोटी मान्यता का अभाव हो गया ।
प्रश्न २४८ - आपने कर्मों की स्वतन्त्रता की सिद्धि की और समझ में भी आया कि कर्म के उदय आदि का कर्ता कार्माणवर्गणा का कार्य
जीव का नहीं । परन्तु 'गौमट्टसार' आदि शास्त्री में लिखा है कि (१) कर्म चक्कर कटाता है । (२) ज्ञानावरणीय के अभाव से केवलज्ञात होता है । (३) क्षायिक सम्यक्त्व दर्शनमोहनीय के क्षय से होता है; आदि कथन शास्त्रो में किया है। क्या वह झूठ लिखा है
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उत्तर- (१) अरे भाई, वह सब व्यवहार कथन है और व्यवहार कथन का अर्थ "ऐसा है नही, निमित्तादि की अपेक्षा कथन किया है", ऐसा जानना चाहिए । ( २ ) जो व्यवहार के कथन को सच्चा ही मानता है वह जिनवाणी सुनने के अयोग्य है और व्यवहार के कथन को सच्चा मानने से मिथ्यात्व की पुष्टि होती है ।
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प्रश्न २४६ - जीव में औदयिक भाव, क्षयोपशम भाव, क्षायिक भाव, औपशमिक भाव भी क्या कर्म की अपेक्षा बिना होते हैं उत्तर - हाँ, जीव मे भी औदयिकादि भावरूप से परिणमित होने
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