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( २६ ) प्रश्न ४७-जहां आगम मे कार्य का एक कर्ता की बात हो, वहाँ पात्रजीव क्या जानते हैं ?
उत्तर-वह चारो का ग्रहण कर लेता है। जो चारो का ग्रहण नही करता है वह झूठा है । यहाँ पर ग्रहण का अर्थ ज्ञान है।
प्रश्न ४८-कुम्हार ने घडा बनाया-इसमें कर्ता कारक को कब माना और कब नहीं माना?
उत्तर-मिट्टी स्वतन्त्रता से घडे को प्राप्त हुई तो कर्ता कारक को माना और कुम्हार घडे को प्राप्त हुआ तो कर्ताकारक को नही माना।
प्रश्न ४६-मिट्टी स्वतन्त्रता से घड़े रूप परिणमी, इसमे से 'स्वतन्त्रता' शब्द को निकाल दें तो क्या नुक्सान होगा?
उत्तर-मिट्टी से घडा बने और कुम्हार से भी घडा बनने का प्रसग उपस्थित होवेगा । इसलिए स्वतन्त्रता शब्द को नही निकाला जा सकता है।
प्रश्न ५०-मिट्टी स्वतन्त्रता से घड़े रूप परिणमी, ऐसे कर्ता कारक को जानने से किस-किस से दृष्टि हट गई ?
उत्तर-मुम्हार, चाक, कीली, डडा, धर्म, अधर्म, आकाश और काल द्रव्यो से दृष्टि हट गई।
प्रश्न ५१-मिट्टी स्वतन्त्रता से घड़े रूप परिणमी तो कतकिारक को माना इसको जानने से क्या लाभ रहा?
उत्तर-जैसे-मिट्टी स्वतन्त्रता से घडे रूप परिणमी; उसी प्रकार विश्व के प्रत्येक द्रव्य और गुण मे स्वतन्त्रता से परिणमन हो चुका है, हो रहा है और भविष्य मे ऐसा ही होता रहेगा-ऐसा उसको ज्ञान हो जाता है, पर मे कर्तापने की खोटी बुद्धि समाप्त होकर ज्ञाता बुद्धि प्रगट हो जाती है । वह केवली के समान ज्ञाता-दृष्टा बन जाता है । मात्र प्रत्यक्ष-परोक्ष का ही अन्तर रहता है।
प्रश्न ५२~-दर्शनमोहनीय के अभाव से क्षायिक सम्यक्त्व हुआ, इसमे फर्ताकारक को कन माना और कब नही माना?